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संतोषी कर मुख्य पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंप दिया, इसी तरह से अन्य भी एक हजार आठ सेठों ने अपना-अपना भार अपने बड़े पुत्र को सौंपा । इस तरह एक हजार आठ सेठों के साथ में कार्तिक सेठ हजार पुरुष उठा सकें ऐसी शिविका में बैठ कर श्री जिनेश्वर भगवान के पास में आए और महोत्सव पूर्वक मुनि सुव्रत स्वामी के चरणों में दीक्षा स्वीकार की और उसके बाद द्वादगांगी का अभ्यास किया । बारह वर्ष का संयम पर्याय पालकर एक महीने का अनशन करके सौधर्मेन्द्र बना । (६३६-६४४)
तथा च सूत्रं - "इहेव जम्बुद्दीवे भारहेवासे हथिणाउरे नामं नयरे होत्था" इत्यादि ।
भगवती सूत्रे श० १८ उ० २ ।
श्री भगवती सूत्र के अठारहवें शतक के दूसरे उद्देश में कहा है कि - यह जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में हस्तिनापुर नामक नगर था । इत्यादि -
एवमुत्पन्नः स शक्रः, प्राग्वत्कृत्वा जिनार्चनम् ।
सुखमास्ते सुधर्मायां, पूर्वामुखो महासने ॥६४५॥ __ इस तरह से उत्पन्न हुए उस इन्द्र ने पूर्व में की थी उसी तरह जिन पूजा करके सुधर्मा सभा में पूर्वा भिमुख आसन पर सुख पूर्वक बैठता है । (६४५)
तिस्त्रोऽस्य पर्षदस्तत्राभ्यन्तरा समिताभिधा । तस्यां देव सहस्त्राणि, द्वादशेति जिना जगुः ।।६४६॥ . देवीशतानि सप्तासयां, मध्या चंडाभिधा सभा । . चतुर्दश सहस्राणि, देवानामिह पर्षदि ।।६४७॥ षटशतानि च देवीनां, बाह्याजातभिधासभा । स्युः षोडश सहस्राणि, पर्षदीह सुधाभुजाम् ॥६४८॥ शतानि पंच देवीनां, यथाक्रममथोच्यते ।।
आयुः प्रमाणमेतासां, तिसृणामपि पर्षदाम् ॥६४६॥
इन्द्र महाराज की तीन पर्षदा होती हैं उसमें अभ्यन्तर पर्षदा का नाम समिता है और उसमें बारह हजार देवता और सात सौ देवियाँ होती है । दूसरी मध्य पर्षदा