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अनशन की आराधना कर काल धर्म प्राप्त कर वह सौधर्मेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ । (६३२-६३७)
गैरिकस्तापसः सोऽपि, कृत्वा बालतपो मृतः । अभूदेरावणसुरः, सौधर्मेद्रस्य वाहनम् ॥६३८॥ भगवती सूत्राभिप्रायस्त्वयं -
वह गैरिकतापस भी ब्राह्यतप करके और मर कर सौधर्मन्द्र के वाहन रूप में ऐरावत हाथी के रूप में उत्पन्न हुआ । (६३८)
यह अभिप्राय श्री कल्पवृत्ति आदि की है । . हस्तिनागपुरे श्रेष्ठी, कार्तिकोऽभून्महर्द्धिकः । सहस्त्रामवणे तत्रामतोऽर्हन्मुनिसुबतः ।।६३६॥ कार्तिकाद्यास्तत्र पौरा, जिनं वन्दितुमैयरुः । प्रबुद्ध कार्तिकः श्रुत्वा, जिनोपदेशमञ्जसा ॥६४०॥ गृहेगत्वा ज्ञातिमित्रस्वजनान् भोजनादिभिः । सन्तोष्य ज्येष्ठतनये, कुटुम्बभारमक्षिपत् ॥६४१॥ स्वस्वज्येष्ठसुते न्यस्तगृहभारैः समन्ततः । अष्टाधिक सहस्त्रेणानुगतो नैगमोत्तमैः ॥६४२॥ सहस्रपुरुषोद्वाह्यामारुह्य शिविकां महैः । .. मुनि सुबतपादान्ते, स प्रबज्यामुपाददे ॥६४३॥ अधीत्य द्वादशाङ्गानि, द्वादशाब्दानि संयमम् । धृत्वा मासमुपोष्यान्ते, सौधर्मनायकोऽभवत् ॥६४४॥ जबकि श्री भगवती सूत्र का अभिप्राय इस तरह है -
हस्तिनागपुर में कार्तिक नामक महान ऋद्धि वाला सेठ रहता था । उस समय श्री मुनि सुव्रत स्वामी 'सहस्राभुवन' में पधारे । कार्तिक सेठ आदि नगर लोग श्री जिनेश्वर को वंदनार्थ गये और श्री जिनेश्वर प्रभु के उपदेश सुनकर कार्तिक सेठ को बोध हुआ । घर में जाकर ज्ञानिजन-मित्र स्वजन आदि को भोजनादि से