SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 441
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३८८) आदि का हास्य कहा है वह पूर्व जन्म के उनके हास्य की परिणति के आधार पर समझना । इस तरह से श्री भगवती सूत्र की टीका में कहा है - एवं स्वभावतो निद्रासद्भावेऽपि सुधाभुजाम ।। येयं तन्द्रा मृतेश्चितं, सा तु भिन्नैव भाव्यते ।।६०॥ इस तरह से स्वभाव से निद्रा का उदय (प्रदेशोदय) होने पर भी जो यह मरण के चिह्न रुप तन्द्रा है । वह अलग ही लगती है । (६०३) किंच - षड्जीविकायारम्भेषु, रता मिथ्यात्वमोहिताः । . यागादिभिजर्विहिंसापहारैमुर्दिताशयाक ।।६०४ ॥ शरीरासनशय्यादि, भाण्डोपकरणेष्वपि । : विमान देवदेवीषु, हर्म्यक्रीडाबनादिषु ।।६०५॥ पूर्वप्रेम्णा स्वीकृतेषु नृतिर्यक्ष्वपि मूर्च्छिता : । सचित्ताचित्तमिश्रेषु मग्नाः परिग्रहेछि वति ॥६०६ ।। मिथ्यात्वी देव षड्जीव निकाय के आरंभ में रक्त होते हैं, मिथ्यात्व से मोहित होता है, यज्ञ में होने वाली जीव हिंसा रुपी उपहार से आनन्दित मनवाला होता है तथा शरीर, आसन-शैय्या, आदि में वासना उपकरणादि में विमान के देव- : देवियों में महल में और क्रीडावन आदि में तथा पूर्व प्रेम से स्वीकार किये मनुष्य और तिर्यंचों में मूर्छा वाले तथा सचित-अचित और मिश्र परिग्रह में तन्मय होते हैं। (६०४-६०६) तथा :- असुरकुमारा पुढविकायंसभारंभतिजावतसकायंसभारंभति, सरीरा परिग्गहिया भवंति, कम्मा प० भ०, भवणा प० भ०, देवा देवीओ मणूसीओ तिरिक्खजोणिआ तिरिक्खजोणिओ प० भ० आसणसयणभंडमत्तोवगरणा परि० भ० सचित्ताचित्तमीसयाई दव्वाइं प० भ०, वाणमंतरा जोतिसवेमणिया जहा भवणवासी तहाणेयव्वा ।" कहा है कि - असुर कुमार देवता- पृथ्वी काय देवता आदि से त्रस काय तक का आरंभ करता है, शरीर ऊपर यज्ञादि कर्म ऊपर भवनादि ऊपर देव-देवी, मनुष्य स्त्री,तिर्यंच, तिर्यंचणी ऊपर, आसन शयन, परतन, उपकरण आदि ऊपर और सचित
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy