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तथाहि - माल्यमलानि: कल्पवृक्षप्रकम्पः श्रीह्वीनाशो वाससां चोपरागः ।
दैन्यं तन्द्रा कामरागाङ्गभंगौ, द्दष्टेभ्रंशो वेपथुश्चारतिश्च ॥५६६ ॥
कहा है कि - माला का मुरझाना, कल्पवृक्ष का कंपना, लक्ष्मी, शोभा और लज्जा का नाश होना, कपड़े को दाग लगना, दीनता, तन्द्रा, कामराग में अल्पता, अंग टूटना, नजर बंद होना, शरीर में कम्पन होना और मन में अरति ये सारे चिन्ह देव देवों के मृत्यु नजदीक के समय सूचक होते हैं । (५६६.)
स्थानाङ्गसूत्रे ऽप्युक्तं "तिहिं ठाणेहि देवे चविस्समित्ति जाणइ, विमाण णिप्पभाई पासित्ता १ कप्परुक्खगं मिलायमाणं पासित्ता २ अप्पणो तेयलेस्सं परिहायमाणिं जाणित्ता ३ इत्यादि । "
श्री स्थानक सूत्र में भी कहा है कि - देवताओं को तीन कारण से मेरा च्यवन होगा इस तरह जानता है - १- विमान की प्रभा घटती देखकर २कल्पवृक्ष को मलीन होते देखकर ३- अपनी तेजोलेश्या (तेज) घटती देखकर इत्यादि ।
तां समृद्धिं विमानाद्यामासन्नं च्यवनं ततः । गर्भोत्पत्यदि दुःखं च, तत्राहारादिवैशसम् ॥५६७॥
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चित्ते चिन्तयताम् तेषां यद्दुःखमुपजायते । तज्जानन्ति जिना एव, तन्मनो वा परे तु न ॥५६८७ ॥
विमानादि उस समृद्धि को देखकर और नजदीक का च्यवन गर्भ में उत्पत्ति आदि दुःख और वहां आहारादि विचित्र क्रियाओं को चित्त विचार करते उन देवों को जो दुःख होता है, वह श्री जिनेश्वर जानते हैं और उनका मन जानता है अन्य कोई नहीं जानता है । (५६७-५६८)
उक्तं च - तं सुरविमाणविभवं, चिंतिय चवणं च देवलोयाओ ।
अइबिलयं जं नवि फुट्टइ सयसक्करं हिययं ॥ ५६६ ॥
कहा है कि - ब्रह्मदेव विमान का वैभव और देवलोक से अपना च्यवन होगा । ऐसा विचार करके उनका हृदय अति बलवान होने पर भी सेंकड़ों टुकड़े रुप टूट जाता है, ऐसा लगता है आंतर वेदना तो हृदय द्रावक होती है । (५६६)