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________________ (३८५) युद्धादिषु मिथस्तेषां, प्रतिपक्षादिनिर्मिता । शस्त्रादिघातजा जातु, देहपीडाऽपि संभवेत् ॥५६२॥ तथा प्रियादीष्ट वस्तुविनाश विप्रयोगजः। शोको मन:खेदरुपो, मरुतामपि संभवेत् ।।५६३॥ तथा उन देवों को परस्पर युद्धादि में शत्रु आदि द्वारा हुई शस्त्र आदि के घात से देह पीड़ा भी संभव हो सकता है तथा पत्नी आदि इष्ट वस्तु का विनाश तथा वियोग से मन के खेद रूप शोक भी होता है । (५६२-५६३) यदाहुः - "जेणं जीवा सारीरं वेदणं वैदंति तेसिणं जीवाणं जरा, जेणं जीवा माणसं वेदणं वैदंति लेसि णं जीवाणं सौगे, से तेणटेणं जाव सोगेऽवि एवं जाव वेमाणियाणं,".भगवती षोडश शतक द्वितीयोद्देशके। ___ श्री भगवती सूत्र के सोलहवें शतक के दूसरे उद्देश में कहा है कि -जो जीव शारीरिक वेदना का अनुभव करता है वह जीवों का जरापना है ऐसा कहलाता है और जो जीव मानसिक वेदना का अनुभव करता है, वह जीवों का शोक है । ऐसा कहने से जरा औरा शोक विमानिक देवों को भी होता है, ऐसा कहा ‘जाता है। ... तथा प्राक् प्रौढपुण्याप्तां, केऽपि दृष्टवा परश्रियम्। . 'मत्सरेणाभिभूयन्ते, निष्पुण्याः सुखलिप्सवः ॥५६४॥ . : . बिना पुण्य के और सुख का लिप्त कोई देव अन्य का विशिष्ट पुण्य से प्राप्त हुए श्रेष्ठ लक्ष्मी वाले को देखकर ईर्ष्या से दुःखी होता है । (५६४) उक्तं च - ईसाविसाय० । किंच माल्यम्लानिकल्पवृक्षप्रकम्पनादिभिः । ... चिदैजनिन्ति तेऽमीभिः षण्मासान्र्तगतां मृतिम् ॥५६५॥ . शास्त्र में कहा है कि देवता इर्षा और विषाद के कारण पीड़ित होते हैं इत्यादि। मुरझाती जाती माला तथा कल्पवृक्ष के कंपन आदि लक्षण से देवता छः महीने के अन्दर अपना मृत्यु को जानते हैं । (५६५)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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