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कर्मा शांस्तावत् एवं, जरयन्त्यसुरान् विधा । नव नागादयो वर्षशताभ्यां स्निग्धभोज्यवत् ॥५७६ ।।
आयु कर्म सहचारी पुण्य कर्म के अनंत-अनंत विभाग की कल्पना करना । उसमें जितने तुच्छ रस वाले अनंता विभागों को, भूखे मनुष्य सामान्य घी वाले पदार्थों को जिस तरह है, उसी तरह व्यंतर देव सौ वर्ष से जीर्ण करता हैखतम करता है । अर्थात् सौ वर्ष सुख भोग कर जिस कर्म अंश को आत्म प्रदेश ऊपर से जीर्णकर खतम करता है : उतने ही कर्म के अंशों को असुर देव सिवाय नाग कुमारादि नौ निकाय देव दो सौ वर्ष बहुत स्निग्ध भोजन के समान खतम करते हैं । (५७७ से ५७६)
असुरास्तावतः कर्माणून, वत्सरशतैस्त्रिभिः । । वत्सराणां चतुःशत्या ग्रहनक्षत्रतारकाः ॥५८०॥ पन्चभिश्च वर्षशतैर्निशाकर दिवाकराः । एके नाब्द सहस्त्रेण, सौधर्मेशाननाकिनः ॥५८१॥ द्वाभ्यां वर्षसहस्त्राम्यां, तृतीयतुर्यनाकगाः । । त्रिभिः सहस्त्रैवर्षाणां, ब्रह्मलान्तकवासिनः ॥५८२॥ चतुः सहस्त्रयाऽब्दैः शुक्र सहस्त्रार भवाः सुराः । , वर्ष पन्चसहस्त्रया चानतादिस्वश्चतुष्कगाः ॥५८३॥ अधोग वेयका वर्षलक्षेण मध्यमास्तु ते । द्वाभ्यां वत्सरलक्षाभ्यां, लक्षैस्त्रिभिस्तदूर्ध्वगाः ॥५८४॥ चतुर्भिश्च वर्ष लक्षैर्विजयादिविमानगाः । पन्चभि वर्षलक्षैश्च, सर्वार्थसिद्धनाकिनः ॥५८५॥ इतने ही कर्म अंशों को असुर देव तीन सौ वर्ष में खत्म करते हैं । ग्रह नक्षत्र और तारा के देव कर्म अंश को चार सौ वर्ष में पूर्ण करते हैं । सूर्य और चन्द के देव उतने पांच सौ वर्ष में, सौधर्म और ईशान देवलोक के देव एक हजार वर्ष में, तीसरे सनत्कुमार और चौथे माहेन्द्र देवलोक के देव दो हजार वर्ष में, ब्रह्म और लांतक देवलोक के तीन हजार वर्ष में, शुक्र और सहस्रार देवलोक के देव चार हजार वर्ष