SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३८०) ततः समधिकात्पल्योपमाच्च समयादिभिः । वर्धमाना स्थितिः पन्चदशपल्योपमावधिः ॥५६५॥ यासां माहेन्द्रदेवानां, भोग्यास्ताः सुरयोषितः । पल्योपमेभ्योऽथ पन्चदशभ्यः समनन्तरम् ॥५६६॥ समयाद्यधिका पल्योपमानि पन्चविंशतिम् । यावद्यासां स्थितिर्नोग्यास्ता लान्तक सुधा भुजाम् ॥५६७॥ पल्योपमेभ्योऽथ पंचविंशतिः समन्तरम् । समयाद्याधिका पन्चस्त्रिंशत्पल्योपमावधिः ॥५६८॥ . यासां स्थिति सहस्त्रार देव भोग्या भवन्ति ताः । ततः परं पन्चचत्वारिंशत्पल्योपमावधिः ॥५६६॥ : स्थितिर्यासां तास्तु भोग्याः प्राणतस्वर्गसनाम् । ततोऽग्रे पन्चपन्चाशत्पल्योपमावधिः स्थितिः ॥५७०॥ यासां ता अच्युत स्वर्ग देवानां यान्ति भोग्यताम् । । नाधस्तनानां निः स्वानां, समृद्धा गणिका इव ॥५७१॥ ईशान देवलोक में पल्योपम से कुछ अधिक आयुष्य वाली देवियां ईशान देवलोक के देवों के योग्य होती है, और समधिक पल्योपम से ऊपर एक समय में लेकर बढते पंद्रह पल्योपम तक जिन देवियों की स्थिति होती है वे देवियां माहेन्द्र देवलोक के देवों के भोग्य बनती हैं । पंद्रह पल्योपम के एक समय से लेकर पच्चीस पल्योपम तक की स्थिति वाली देवियां लांतक देवलोक के देवों के भोग्य बनती है । पच्चीस पल्योपम के एक समय से लेकर पैंतीस पल्योपम तक स्थिति वाली जो देवियां हैं वे देवियां सहस्रार देवलोक के देवों के भोग्य बनती है, उसके बाद पैंतालीस पल्योपम तक की जिसकी स्थिति है, वे देवियां प्राणत स्वर्ग के देवताओं के भोग्य बनती है, और वहां से आगे पचपन पल्योपम के आयुष्य वाली देवियां अच्युत स्वर्ग के देवों के भोग्य बनतो है । नीचे देवों को नहीं होती । जैसे समृद्धशाली गणिका दरिद्र को काम नहीं आती वैसे उन्हें काम नहीं आती । (५६४-६७१)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy