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________________ (३७६) स्थितिः समाधिका यावत्पल्योपमानि विंशति । यासां ता ब्रह्मदेवानां, भोग्या नोपरिवर्तिनाम् ॥५५६॥ समयाद्यधिका पल्योपमेभ्यो विंशते परम् । यासां स्थितिः स्याद्देवीनां, त्रिंशत्पल्योपमावधि ॥५६०॥ शुक्र देवोपभोग्यास्तास्भिशतपल्योपमोपरि । समयाद्यधिका चत्वारिंशत्पल्योपमावधिः ॥५६१ ॥ यासां स्थितिस्ता भोग्याः स्पुरानतस्वर्गवासिनाम् । पल्योपमेभ्यश्चत्वारिंशश्च समयादिभिः ॥५६२॥ वर्द्धमाना क्रमात्पन्चाशत्पल्यावधिका स्थितिः । यासां ताः परिभोग्याः स्युरारणस्वर्गवर्तिनाम् ॥५६३॥ सौधर्म देवलोक में अपरिगृहीता देवियां हैं जिसकी स्थिति एक पल्योपम की है । उनकी कान्ति तेज और ऐश्वर्य भी अल्प होता है । ये सब देवियां सौधर्म देवलोक के देवों को ही उस प्रकार की गणिका के समान योग्य होता है । प्रायः ऊपर के देवलोक के देवों के भोग्य नहीं होती है। इन अपरिगृहीता देवियों में जिसकी स्थिति पल्योपम से अधिक एक समय से लेकर दस पल्योपम तक की होती है वह सनत् कुमार देवलोक के देवों के भोग्य बनती है, परन्तु इससे ऊपर नहीं होती हैं । और दस पल्योपम ऊपर एक समय से लेकर क्रमश: बीस पल्योपम तंक की स्थिति वाली देवियां ब्रह्म देवलोक के भोग्य बनती है, ऊपर के देवों की नहीं होती है। बीस पल्योपम ऊपर एक समय से लेकर तीस पल्योपम तक की स्थिति वाली देवियां शुक्र सातवें देवलोक के देवों के योग्य बनती है । तीस पल्योपम ऊपर एक समय से लेकर चालीस पल्योपम तक की स्थिति वाली देवियां आनत स्वर्गवासी देवों के भोग्य बनती है । चालीस पल्योपम के एक समय से बढते समय पचास पल्योपम तक की स्थिति वाली देवियां आरण स्वर्ग के देवों के भोग्य बनती है । (५५५-५६३) ईशानऽप्येवमधिकपल्योपम स्थिति स्पृशः । देव्यस्तद्वासिनावमेव, देवानां यान्ति भोग्यताम् ॥५६४॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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