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________________ (३७८) पहले देवलोक में पति वाली परिगृहीता देवियों की उत्कृष्ट स्थिति सात पल्योपम की है और जघन्य स्थिति एक पल्योपम की होती है । (५५०) . तासामीशाननाके तु, नवपल्योपमात्मिका । गरीयसी लघुः पल्योपमं समधिकं स्थितिः ॥५५१॥ दूसरे ईशान देवलोक की देवियों की उत्कृष्ट स्थिति नौ पल्योपम की है । जबकि जघन्य एक पल्योपम से कुछ अधिक होती है । (५५१) साधारणीनां सौधर्मे, विमानाः सुरयोषिताम् । षड् लक्षाणि द्वितीये तुलक्षाश्चतस्त्र एव ते ॥५५२॥ . प्रथम सौधर्म देवलोक में अपरिगृहीता देवियों के विमान छह लाख हैं और दूसरे देवलोक में चार लाख होते हैं । (५५२) साधारणसुरस्त्रीणां, सौधर्मे स्माद्गुरु स्थितिः । पल्योपमानि पन्चाशत्, पल्योपर्म जघन्यतः ॥५५३॥ सौधर्म देवलोक की अपरिगृहीता देवियों की उत्कृष्ट स्थिति पचास पल्योपम की होती है और जघन्य स्थिति एक पल्योपम की होती है । (५५३) आसामीशाने तु पन्चपन्चाशत्परमा स्थितिः । पल्योपमानि हीना तु, पल्यं किंचन साधिकम् ॥५५४॥ दूसरे ईशान देवलोक में इन अपरिगृहीता देवियों के पचपन पल्योपम् की उत्कृष्ट स्थिति होती है, और साधिक पल्योपम की जघन्य स्थिति होती है । (५५४) यासां सौधर्मेऽथ साधारणा दिव्यमृगीदृशाम् ।। स्थितिः पल्योपममेकं, ताः स्तोकातिवैभवः ॥५५५॥ सौधर्मनाकिनामेव, तादृक्पण्याङ्गनादिवत् । भोग्या नतूपरितनस्वर्गिणां प्रायशः खलु ॥५५६॥ .. यासां त्वेकदिसमयाधिक पल्योपमादिका । , स्थितिः क्रमाद्वर्द्धमाना, दशपल्योपमावधि ॥५५७॥ . सनत्कुमार देवानां, भोग्यास्ता नोर्ध्ववत्तिनाम् । दशभ्यश्च परं पल्योपमेभ्यः समयादिभिः ॥५५८॥ .
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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