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वर्षादि करते हैं । नागकुमार आदि नहीं करते । नाग कुमार का गमन तीसरी पृथ्वी से आगे (नीचे) नहीं जाते । इसके ऊपर से अनुमान होता है "नो असुरो, नो नाओ'' शब्दों से चौथी नरक के नीचे असुर कुमार नागकुमार का गमन नहीं होता। ऐसा अनुमान होता है। यह बात श्री भगवती सूत्र की टीका में छठे शतक के आठवें उद्देश में कहा है। ___ तत्वार्थ सूत्र की टीका में तो कहा है कि जिन देवताओं की स्थिति जघन्य से दो सागरोपम की. होती है वही देवता सातवी नरक तक जा सकता है । और वह सनत्कुमार कल्पसहित ऊपर के देवता होते हैं । यह वर्णन केवल शक्ति बताने के लिए ही कहा है । किसी दिन कोई गया नहीं है । देवता तिर्छ लोक में असंख्य कोडा कोडी हजार योजन आता है । जिन देवों की जघन्य स्थिति दो सागरोपम से न्यून, न्यूनतम है । वह देव एक न्यून-कम पृथ्वी तक जा सकता है अर्थात् छठी तक, पांचवी तक, चौथी तक यावत् तीसरी पृथ्वी तक है । सातवीं, छठी पंचमी चौथी तक का गमन शक्ति वर्णन मात्र जानना । जबकि तीसरी पृथ्वी में तो पूर्व सम्बन्धी को मिलने आदि के लिए देव गये हैं और जायेंगे । आगे की नरक पृथ्वी में शक्ति होने पर भी देव गये नहीं है, और जायेंगे भी नहीं । क्योंकि वहां उदासीन भाव-माध्यस्थ्यभाव होता है इससे ऊपर से ऊपर के देव श्री जिनेश्वर भगवान को वंदनादि भक्ति के कार्यों को करने के बाद जाने आने में आनंद अनुभव नहीं होता।
पंच सग्रह में तो कहा है कि - 'सहस्रार देवलोक तक के देव नारक जीव के स्नेह से तीसरी पृथ्वी तक जाते हैं और अच्युत देवलोक के देवता की सहायता से अन्य देवता अच्युत देवलोक तक उर्ध्व जा सकता है ।' (१)
श्री मलय गिरि जी विरचित टीका में भी कहा है कि - आनतादि देव अल्प स्नेह वाले होने के कारण से स्नेहादि के प्रयोजन से भी नरक में नहीं जाते । इसलिए यहां पूर्व में सहस्रार तक ही कहा है ।
एवं मित्रादि साहाय्यादिनोर्ध्वं यावदच्युतम् । । यान्त्यायान्ति च कल्पस्थाः परतस्तु न जातु चित् ॥५०६ ॥
इस तरह मित्र आदि की सहायता से अच्युत देवलोक तक कलोपन्न देवता जाते हैं और आते हैं । परन्तु आगे नहीं जाते हैं । (५०६)