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(३६६) भा०, नवरं देवोऽवि प०, असुरोवि प०, नो नागो, एवं चउत्थीएवि, नंवर देवो एक्को प०, असु, नो नाओ, एवं हेछिल्लासु सव्वासु देवो एक्को प० नो० नाओत्ति, नागकुमारस्य तृतीयायाः पृथिव्या अधोगमनं नास्तीत्यत एवानुमीयते 'नो असुरो नो नाओ'त्ति इहाप्यत एव वचनच्चतुर्थ्यादीनामद्योऽसुरकुमार नाग कुमारयोर्गमनं नास्तीत्यनुमीयते" भगवती सूत्र वृत्तौ षष्ठशतक अष्टमोद्देशके, तत्वार्थ वृत्तौ तु "येषां द्वे सागरोपमे जघन्या स्थिति स्ते किल देवाः सप्तमधरा प्रयान्ति,तेच सनत्कुमार कल्पात्प्रभृति लभ्यन्ते,शक्ति मात्रं चैतद्वर्ण्यते,न पुनः कदाचिदप्पगमन्, तिर्यगसंख्येयानि योजन कोटीनां कोटिसहस्त्राणि, ततः परमित्यादि, सागरोपमद्वया दधो जघन्या स्थितिर्येषां न्यूना न्यूनतमा चेति, ते चैकेकहीनां भुवमनु प्रान्नुवन्ति यावत्तृतीया पृथिवी, तां च तृतीयां पूर्वसंगति काार्थ गता गमिष्यन्ति, परतस्तु सत्यामपि शक्तौ न गतपूर्वा नापि गमिष्यन्ति औदासन्यिात् - माध्यस्थद्, उपर्युपरि न गति रतयो देवा जिनाभिवन्दनादीन् मुक्तवे" ति, पच्चसंग्रहे तु -
सहसारंति अदेवा नायनेहेण जंति तइय भुवं ।
निन्जति अच्चुअं जा अच्चुअदेवेण इयर सुरा ॥१॥ - एतट्टीकायामपि श्री मलयगिरि विरचितायां - आनतादयोदेवाः पुनरल्प स्नेहादिभावात् स्नेहादि प्रयोजनेनापि नरकं न गच्छंतोति सहस्त्रारांतग्रहण" मिति.। - आगम में इस तरह कहा है - हे भदंत ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे बडे बादल जल योनिक वात योनिक उत्पन्न होते हैं ? और वर्षा करते हैं इसका उत्तर भगवान देते हैं - हां गौतम ! तीनो वस्तु होती है - अर्थात् जल योनिक वात योनिक उत्पन्न होते हैं और वर्षा होती है । यह भी तीनों देव करते हैं । देव वैमानिक भी, असुर कुमार भी और नागकुमार भी होते हैं, इस तरह से दूसरे नरक पृथ्वी में भी कहा है, इस प्रकार से दो नरक तक जानना, तीसरी नरक पृथ्वी में भी कहा है, केवल तीसरी में देव और असुर कुमार वर्षा आदि करते हैं । नागकुमार नहीं करते हैं । इसी तरह से चौथी नरक पृथ्वी में भी केवल देवता करते हैं । असुर अथवा नाग कुमार नहीं करते । इसी प्रकार से नीचे की सर्व पृथ्वी में वैमानिक देव ही