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दस हजार वर्ष से एक-एक क्षण बढते यावत् सागरोपम से कम जिसकी स्थिति हो ऐसे देवों को दिवस पृथकत्व में दो से नौ दिन में भोजन की इच्छा होती है और मुर्त (दो से नौ मुहूर्त) में श्वासोच्छ्वास लेते हैं । दिन पृथक्त्व भोजन अर्थात् इन देवों को दिन पृथकत्व - भोजनानंतर होता है और मुहूर्त पृथकत्व श्वावोच्छ्वास होता है । (४४६-४४७)
पृथुक्त्वं तु द्विप्रभृतिन वपर्यन्तमुच्यते । पूर्णाम्भोधिस्थितीनां तु ततः सागरसंख्यया ॥४४८॥ आहारोऽब्द सहस्रैः स्यात्पक्षैरूच्छ्वास एव च ।
एव च स्वर्गयोराद्यद्वितीययोः सुधभुजः ॥४४६॥ - पृथक्त्व शब्द २.से ६ संख्या का सूचक है । सम्पूर्ण सागरोपम की स्थिति बाले देवों की जितने सागरोपम का आयुष्य होगा उतने हजार वर्ष आहार की अभिलाषा होती है । अर्थात एक सागरोपम के आयुष्यवान् देव को एक हजार वर्ष में आहार होता है और सागरोपम की संख्या अनुसार उतने पाक्षिक में श्वासोच्छ्वास लेते हैं । एक सागरोपम के आयुष्यवान् देव पाक्षिक में श्वासोच्छावास लेता है । इस तरह प्रथम और द्वितीय देवलोक के देवता को हजार वर्ष में आहार और पखवाडिये में श्वासोच्छवास होता है । (४४८-४४६)
जघन्य जीविनो घस्रपृथक्त्वेनैवभुज्जते । - मुहूर्तानां पृथक्त्वेन श्वासोच्छ्वासं च कुर्वते ॥४५०॥
द्वाभ्यां वर्ष सहस्राभ्यामश्नन्त्युत्कृष्टजीविनः । ....... मासेनचोच्छ्वसन्त्येवं, भाव्या मध्यमजीविनः ॥४५१॥ ___जघन्य आयुष्य वाले दिन पृथक्त्व में आहार करते हैं और मुहूर्त पृथक्त्व में श्वासोच्छ्वास लेते हैं। उत्कृष्ट आयुष्य वाले दो हजार वर्ष में आहार लेते हैं, और महीन में श्वासोच्छ्वास लेते हैं । मध्यम आयुष्य वाले देवों का मध्यम समझ लेना। (४५०-४५१) ... एवमेते कृ ताहाराः, पुनरप्यप्सरोजनैः ।
उपक्रान्ते नाटकादौ, प्रवर्तयन्ति मानसम् ॥४५२॥