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(३५५).
देव यक्षावेश नामक उन्माद को प्राप्त करता है । और दूसरा मोहनीय के उन्माद से होता है । इस तरह से वाण व्यंतर ज्योतिष और वैमानिक देवताओं का असुर कुमार के समान समझ लेना ।'
पश्यतैवं शक्ति युक्ता, विवेकिनोऽपि नाकिनः । हन्तानेनविडम्बयन्ते, सतयं सर्वङ्कषः स्मरः ॥४३६॥
देखो इस तरह से शक्तिशाली और विवेकी भी देवता वस्तुतः इस कामदेव से विडम्बित (दुःखी) होता है इसलिए कामदेव सबको खींचने वाला है यह बात - सत्य है । (४६६) .
योऽख्वयच्दर्वगर्वसर्वस्वमौर्वदुर्वहः । _ कि मपूर्वमखर्वोऽयं, निर्वपुर्यत्सुपर्वजित् ॥४३७॥
सर्व लोक के गर्व का सर्वस्व तिरस्कार करने वाला, पर्वत के समान दुर्वह-वहन न करने योग्य, अखर्व-विशाल कापदेव कोई अपूर्व कोटी का है जोकि शरीर रहित होने पर भी देवों को भी जीतने वाला है । (४३७) - भवनव्यन्तरज्योतिष्काद्यकल्पद्वयावधि ।।
विडम्बनैवं कामस्य, ज्ञेया नातः परं तथा ॥४३८॥
भवन पति, व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक में दो देवलोक तक इस तरह कामदेव की विडम्बना होती है उसके बाद ऐसा नहीं होता । (४३८) - अथो यथोक्तकालेन, यद्याहारार्थिनः सुराः ।
तदा संकल्प. मात्रेणोपस्थिताः सारपुद्गलाः ॥४३६॥ .. सर्वगात्रेन्द्रिया व्ह्लादप्रदाः परिणमन्ति हि ।
सर्वाङ्गमाहारतया, शुभकर्मानुभावतः ॥४४०॥
इसके बाद जब शास्त्रोक्त समय में आहार की इच्छा होती है उस समय संकल्प मात्र से उपस्थित हुई सर्व गात्र-शरीर और इन्द्रियों को आह्लाद देने वाले सारभूत पुदगल सर्व उमंग में शुभ कर्म के प्रभाव से आहार रूप में परिणित होता है । (४३६-४४०) . ..