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________________ (३५१) - जब इन देवों को काम विलास की अभिलाषा उत्पन्न होती है उस समय देव पर्षदा का विसर्जन करके अंत:पुर के साथ में सुधर्मा सभा में से निकल कर, महल रहित उद्यानादि स्थानों में जाकर कामकेलि करते हैं - कामलीलाभिलाषे तु, विसृज्य देवपर्षदम् । . सुधर्मायाः सभायाश्च, निर्गत्यान्तः पुरैः सह ॥४१५॥ गत्वोक्तरूपप्रासादोद्यानादिष्वास्पदेषु ते । मनोऽनुकूलाः सर्वाङ्गसुभगा दिव्यकामिनीः ॥४१६॥ रम्यालङ्कारनेपथ्या, रूपयोवनशालिनीः । कटाक्ष विशिखैर्नर्मोक्तिभिर्द्विगुणितस्पृहाः ॥४१७॥ भर्तृचित्तानुसारेणानेकरूपाणि कुर्वतीः । प्रतिरूपैः स्वयमपि, प्रेमतो बहुभिः कृतैः ॥४१८॥ हठात्प्रत्यङ्गमालिङ्गय, वक्त्रमुन्नम्य चुम्बनैः । ससीत्कारं सुधाधारमधुराधरखण्ड नैः ॥४१६॥ निःशङ्कप्रङ्कमारोप्य, निर्दयं स्तनमर्दनैः । मज्जनतो मैथुनरसे, मनुष्यमिथुनादिवत् ॥४२०॥ इत्थं सर्वाङ्गीण कायक्लेशोत्थां स्पर्श निर्वृतिम् । आंसादयन्तस्तृप्यन्ति, क्लिष्टपुंवेदवेदनाः ॥४२१॥ सप्तभिः कुलकं ॥ . मन के अनुकूल सर्व अंग में सौभाग्यशाली दिव्य अप्सरायें जो सुन्दर अलंकार और वस्त्र धारण करती हैं । रूप और यौवन से शोभायमान होती हैं । कंटाक्ष रूपी बाल से मखोल भरी प्रेमयुक्त वाणी से प्रेम प्रीति को द्विगुणीत करने वाली होती है, और पति के चित्त के अनुसार अनेक रूपों को बनाने वाली होती है स्त्रियों के साथ में स्वयं भी प्रेम पूर्वक अनेक रूप के बल से अंग-अंग में आलिंगन करके मुख पर चुंबन करके, मुख को अच्छी तरह नमाकर, दबाकर अत्यन्त हर्ष के समय का सी, सी शब्द सीत्कार (सिसकारी) निकले उस तरह सुधा पान सद्दश मधुर होठ को चुम्बन करते हुए निःशंकता पूर्वक अप्सराओं को गोद में बैठाकर निर्दयता पूर्वक स्तन को मर्दन करके, मनुष्य के मैथुन के समान मैथुन रस में डूब
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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