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लगाते हैं । कोई देवता लम्बी पुष्प की मालाओं के समूह वाले तोरण बांधते हैं । तो कोई द्वार पर कुमकुम (करार) के हस्तचिन्ह करते हैं । चन्दन के घडे रखते हैं, कई देवता भूमि पर पांच वर्ण के पुष्प की रचना से सुन्दर बनाते हैं तो कोई देवता जलते कृष्ण गरु धूप के धुएं से वातावरण को सुगंधितमय बनाते हैं इस तरह से वे विमान को देवता शोभायमान बनाते हैं, कोई देवता नाचते हैं, कोई हंसता है कोई गाता है तो कोई बाजा बजाता है, कोई रजत स्वर्ण, रत्न श्रेष्ठ वस्त्रादि की वृष्टि करता है, तो कोई वज्ररत्नों के, पुष्पों की माला को, सुगन्ध चूर्ण को और आभूषणों को बरसाता है । कोई देवता हाथी के समान गर्जना करता है । कोई घोडे के समान हिनहिनात् करता है, कोई देवता भूमि को आस्फोटन करता है, कोई देव सिंहनाद-गर्जना करता है कोई बिजली के चमत्कार को करता है, कोई जोर से उत्साह युक्त अनुरोध करता है, कोई जोर कोलाहल करता है, कोई देव कूदता है, कोई उछलता है । इस तरह स्वामी की उत्पत्ति से आनंदित बने देवता बहुत प्रकार से चेष्टा करता है । (३१८-३२५)
अभिषिच्योत्सवैरेवं, सुराः स्तुवन्ति तानिति । चिरं जीव चिरं नंद, चिरं पालय नः प्रभो ॥३२६॥ विपक्षपक्षमजितं, जय दिव्येन तेजसा । जितानां सुहृदां मध्ये, तिष्ठ कष्टविवर्जितः ॥३२७॥
इस तरह से देवता उत्सवपूर्वक अभिषेक करके वह नये उत्पन्न हुए स्वामी देव की इस प्रकार से स्तुति करते हैं - हे स्वामिन् ! आप चिरकाल जिओ, . चिरकाल आनंद करो, चिरकाल तक हमारा पालन करो, नहीं जीतने वाले विपक्ष, पक्ष को दिव्य तेज द्वारा जीत लो, जीते हुए मित्रों के बीच में तुम कष्टरहित विराजमान हो । (२२६-३२७)
सुरेन्द्र इव देवानां, ताराणामिव चन्द्रमाः । नराणां चक्रवर्तीव, गरुत्मानिव पक्षिणाम् ॥३२८ ।। विमानस्यास्य देवानां, देवीनामपि भूरिशः । ‘पल्योपम सागरोपम मणि पालय वैभवम् ॥३२६॥