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________________ (३३३) अभिषिन्वन्ति तानिन्द्राभिषकेण गरीयसा । पुष्पैः सर्वर्तुकैः सर्वोषधीभिरर्चयन्ति च ॥३१७॥ युग्मं ।। उसके बाद विमान वासी सामानिक आदि सब देव और देवियां स्वाभाविक और वैक्रिय शक्ति से बनाये गये कलशों द्वारा वह नये उत्पन्न हुए स्वामी देवों के बड़े इन्द्राभिषेक द्वारा अभिषेक करते हैं और सर्वऋतु के पुष्प और सर्व प्रकार की औषधियों से पूजा करते हैं । (३१६-३१७) तेषामिन्द्राभिषेकेऽथ, वर्तमाने मुदा तदा । सुराः सुगन्धाम्बु वृष्ट्या, केचित्प्रशान्तरेणुकम् ॥३१८॥ केचित्संमृष्टोपलिप्तशुच्यध्वापण वीथिकम् । मन्चाति मन्च भूत्केचित्, केऽपिनानोच्छ्रितध्वजम् ॥३१६॥ आबद्धतोरणं लम्बि पुष्प दामोच्चयं परे । द्वाय॑स्त चन्दन घटं, दत्तकुङ्कमहस्तकम् ॥३२०॥ केचित्प्रन्चवर्ण पुष्पोपचार चारु भूतलम् । दग्धकृष्णागुरु धूपधूमैरन्येः सुगन्धितम् ॥३२१॥ • तत्तद्विमानं कुर्वन्ति, परे नृत्यन्ति निर्जराः । हसन्ति केचिद् गायन्ति, तूर्याणि वादयन्ति च ॥३२२॥ केचिद्वर्षन्ति रजतस्वर्ण रत्नवराम्बरैः । वजैः पुष्पैर्माल्यगन्थैर्वासैश्चामरणैः परे. ॥३२३॥ केचिद् गर्जन्ति हेषन्ते, भूमिमास्फोटयन्ति च । सिंहनादं विदधते, विद्युद वृष्टि आदि कुर्वन्ते ॥३२४॥ दृक्कारैरथ बूत्कारैर्वल्गनोच्छलनादिभिः । .. स्वाम्युत्पत्ति प्रमुदिताश्चेष्टनते बहुधा सुराः ॥३२५॥ अष्टभिः कुलकं ॥ इसके बाद इस इन्द्राभिषेक की क्रिया के समय में कई देवता आनंद पूर्वक सुगन्धी पानी की वृष्टि से विमान को शान्त रजवाला बनाते हैं, तो कोई देवता अच्छी तरह से सफाई करके और लिपाड्कर पवित्र रास्ते वाले बाजार बनाता है, कई देवता छोटे बडे मंच बनाते हैं, तो कोई विविध प्रकार की ध्वजाएं
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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