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उपपात सभावत् स्यात, सभा सूक्ता सुपीठिका । पूर्वोक्त हृदवन्नन्दापुष्करिण्यपिमानतः ॥२८१ ॥
उपपात सभा के समान प्रत्येक सभाओं में पीठिकाएं होती हैं, तथा नन्दा पुष्करिणी के प्रमाण अनुसार सरोवर होता है । (२८२)
अस्या नन्दा पुष्करिण्या, ऐसान्यामतिनिर्मलम् । बलीपीठं रत्नमयं दीप्यते दीप्रतेजसा ॥२८२॥
इस नन्दा पुष्करिणी के ईशान कोने में रत्नमय अति निर्मल बलिपीठ होते हैं जो अत्यन्त तेजस्वी प्रकाशमय होते हैं । (२८२) .
वैमानिक विमानानि, किंचिदेवं स्वरूपतः । .. वर्णितानि विशेषं तु शेषं जानन्ति तीर्थंपाः ॥२८३॥
इस तरह वैमानिक विमान का कुछ स्वरूप वर्णन किया है, और विशेष तो श्री तीर्थंकर भगवन्त जानते हैं । (२८३)
एतेषु स्वर्विमानेषु योपपातसभोदिता । .. तत्रोपपात शय्या या, देवं दूष्य ,समावृता ॥२८४॥
. इन देव विमानों में जो उपपात सभा कही है । और उसमें जो उपपात शय्या कही है वह देवदूष्य से आच्छादित होती है । (२८४)
सूरिश्रीहरिविजयश्रीकीर्तिविजयादिवत् । शुद्धं धर्म समाराध्य, साधितार्थाः समाधिना ॥२८५॥ साधवः श्रावकास्तस्यां, विमानेन्द्रतया क्षणात् । उत्पद्यन्तोऽङ्गुलासंख्य भागमात्रावगाहनाः ॥२८६॥ युग्मं ।।
अब उपपात शय्या में आचार्य श्री हरि सूरीश्वर जी महाराज तथा पूज्य उपाध्याय श्री कीर्ति विजय जी महाराज आदि साधु और श्रावक शुद्धधर्म की आराधना कर समाधि पूर्वक आत्म कल्याण साधकर क्षण में विमान के स्वामी रूप में उत्पन्न हुए हैं और उत्पत्ति के समय में अंगुल के असंख्यात भाग मात्र अवगाहना वाले होते हैं । (२८५-२८६)