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________________ (.xxxvii) | सं० सं० y६३ क्र० विषय श्लोक | क्र० विषय श्लाक सं० | सं० ५५७ देव चैत्य की सफाई करते है ३५६/५७५ देवों की शक्ति - ४०६ ५५८ चैत्य द्वारों की सफाई व पुष्प- ३६१ ५७६ देवताओं का काल निर्गमन ४१३ धूप ५७७ देवों की काम क्रीड़ा का वर्णन ४१५ ५५६ चैत्य स्तूपों की प्रतिमाओं की ३६६ ५७८ देवों की रति क्रीड़ा ४२२ पूजा ५७६ वैक्रिय पुदगलों का परिणमन ४२७ ५६० दक्षिण दिशा के चैत्य वृक्ष- ३६६/५८० अपरिगृहीता देवियों के साथ ४२६ ध्वज-नंदा पुष्कारिणी की पूजा . में रति क्रीड़ा ५६१ उत्तर दिशा के चैत्य वृक्ष- ३७२/५८१ |५८१ देवताओं की दो प्रकार की ४३१ ....... स्तूप-प्रतिमा आदि की पूजा उन्मतता ५६२ जिनेश्वरों की अस्थि और ३७४ | ५८२ देवों के लिये भी कामदेव ४३६ उसके चैत्य स्तंभों की पूजा अजेय है माणपालिका, शस्त्रागार, दव ३७८|५८३ इच्छा मात्र से आहार की तृप्ति ४३६ शय्या आदि की पूजा. आहार पुद्गल कौन देव देख ४४३ ५६४ व्यवसाय सभा की पूजा और सकते है विर्सजन भवन पति आदि देवों के ४४४ ५६५ जिनेश्वरों के नमन-पूजन में : आहार-इच्छा-श्वासोच्छवास भावं के विषय में ५६६ विमानों का वर्णन 'राज- ३६१ |५८६ सागपरोपम से कम स्थिति के ४४६ : प्रश्नीय' सूत्र के अनुसार देवों का आहार-श्वासोच्छवास ५६७. कल्पातीत देव क्या, उनके लक्षण३६६ के विषय में ५६८ देवों की देह की कान्ति-संस्थान ३६८ | के विषय में | ५८७ स्थिति अनुसार आहार श्वासो- ४४८ ५६६ देवों के शरीर के.विषय में क्या ३६६ च्छवास देवताओं का काल नहीं होता? निर्गमन ५७० देवों के दंत केश आदि के ४००/५८८ देवताओं का प्राण निर्गमन ४५३ विषय में |५८६ देवों का परस्पर औचित्य ४५६ ५७१ देवों के चिन्ह भूषित मुकुटों के सर्व देवों का एक विषय में ४५६ विषय में सुख का काल ५७२ चिन्हों के विषय में मतान्तर ४०३५६१ देव मनुष्य लोक में किस ४६० ५७३ देवों की भाषा कारण नहीं आता ५७४ देवों के चक्षु तथा माला के ४०६/५६२ यहाँ आते देवों को देवांगनाओं ४६४ विषय में के कटाक्ष ४०४
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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