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इस सरोवर से ईशान कोने में अभिषेक सभा होती है, उसके तीन द्वार होते हैं और स्वरूप से सर्व प्रकार से सुधर्मा सभा के समान होता है । (२६८)
विभाति मध्यदेशेऽस्या, महती मणिपीठिका ।
विमानेशाभिषेकाह, तत्र सिंहासन स्फुरत् ॥२६६॥ . - इस अभिषेक सभा के मध्य विभाग में एक बड़ी मणिपीठिका होती है और उस स्थान पर विमान के स्वामी देव को अभिषेक करने योग्य देदीप्यमान सिंहासन होती है । (२६६)
सन्ति तत्परिवाराह भूरिभद्रासनान्यपि । विमानेशाभिषेकार्थस्तत्र सर्वोऽप्युपस्करः ॥२७०॥
वहां उसके परिवार के योग्य बहुत भद्रासन भी होते हैं और विमान नरेश के अभिषेक योग्य सर्व उपकरण भी होते हैं । (२७०)
अमुष्याअप्यथैशान्यां, सुधर्मा सद्दशी भवेत् । अलङ्कार सभा मध्यदेशेऽस्या मणि पीठिका ॥२७१ ॥ तस्यां च सपरीवारं, रत्नसिंहासनं भवेत् । विमान स्वामिनः सर्वेऽलङ्कारोपस्करोऽपि ॥२७२॥
अभिषेक सभा के इशानं कोने में भी सर्व प्रकार से सुधर्मा सभा समान अलंकार संभा है । उसके मध्यविभाग में मणि पीठिका है । उसके ऊपर सपरिवार सहित रत्न सिंहासन है और विमान स्वामी के सर्व अलंकार के उपकरण भी हैं । (२७१-२७२) .
अलङ्कार सभाया अप्यै शान्यां भवेत् । व्यवसाय सभा सर्वात्मना तुल्या सुधर्मया ॥२७३॥
इन अलंकार सभा से ईशान कोने में एक सुन्दर व्यवसाय रोजगारी सभा है जो सर्व प्रकार से सुधर्मा सभा समान है (२७३).
तस्यां रत्नपीठिकायां रत्न सिंहासनं भवेत् । शत्युस्तकं चाङ्करत्नमयपत्रैरलङ्कृतम् ॥२७४॥