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अष्टोत्तरं शतं धूपकडुच्छकाश्च रत्नजाः । भवन्ति सिद्धायतने, श्री जिनप्रतिमाग्रतः ॥२६॥
इस सिद्धायतन में जिन प्रतिमा के आगे एक सौ आठ की संख्या में वस्तुर होती हैं वह इस प्रकार-घंटा कलश, बड़े कलश, दर्पण सुप्रतिष्ठक, बड़े-बड़े थाल थाली मनोगुलिका, विविध जात के रत्नों की करंडी रकाबी, पंखा, हाथी, घोड़े मनुष्य सर्प किंपुरुष, बैल, किन्नर आदि की मुखाकृतियां, पुष्प की माला, सुगन्ध चूर्ण, वस्त्र और आभूषण से भरी तथा सरसों और मोर पौंछ से भरा झाबा, पुष्पादि की सुन्दर रचना छत्र चमर ध्वज, तेल का कोठार, गुलाब, दालचीनी, इलायची डब्बे, तथा हंसपाद हडताल, मन शील, अंजन से भरे डब्बे घंटे तथा रत्नों से बनी धूपदांनियां होती हैं । (२५६-२६४) -- अर्थतस्माग्जिन गृहादेशान्यां महती भवेत् । . ..
उपपात सभा साऽपि, सुधर्मेव स्वरूपतः ॥२६५॥
यह सारी सामग्री सिद्धायतन में श्री जिनं प्रतिमा के आगे होती है इस जिन गृह से ईशान कोने में बड़ी उपपात नाम की सभा होती है । उसका भी स्वरूप से सुधर्मा सभा के समान ही समझना । (२६५)
चत्वारि योजनान्यत्रोच्छिताऽष्टौ च ततायता । पीठिकाऽस्यां विमानेशोपपांतशयनीयकम् ॥२६६॥
उपपात सभा में चार योजन ऊंची और आठ योजन लम्बी-चौड़ी पीठिक है। इस पीठिका के ऊपर विमान के स्वामी की उपपात शय्या है । (२६६)
अर्थशान्यामुपपात सभायाः स्यान्महाहृदः । शतं दीर्घस्तदोरूर्दशोण्डो योजनानि सः ॥२६७॥
इस उपपात सभा से ईशान कोने में बडा सरोवर है, जो सौ योजन लम्बा पचास योजन चौड़ा और दस योजन गहरा है । (२६७)
हृदादस्मादथैशान्यामभिषेक सभा भवेत् । त्रिद्वारा स्यात् सापि सर्वात्मना तुल्या सुधर्मया ॥२८॥