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(३२२) शयनीयादथैशान्यां महती मणिपीठिका । क्षुल्लो महेन्द्र ध्वजो ऽस्थां,चैत्य स्तम्भोक्तमानभृत ॥२४६॥
शय्या से ईशान कोने में बड़ी मणि पीठिका है उसके ऊपर चैत्य स्तंभ में कहे अनुसार वाला छोटा महेन्द्र ध्वज है । अर्थात् साठ योजन ऊंचा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा है । (२४६).
१९ । (२४८) . ध्वजादेतस्मात्प्रतीच्यां विमान स्वामिनो भवेत् । ... ...
चौपालख्यः प्रहरणकोशः शस्त्रशतान्चितः ॥२५०॥
इस ध्वज से पश्चिम दिशा में विमान स्वामी देव का चौपाल नामक सैंकड़ों शस्त्रों से युक्त शस्त्रागार होता है । (२५०)
मानमस्या वक्ष्यमाणसभाऽर्ह द्वेश्मनामपि । तद् द्वार मण्डप स्तूप वृक्षादीनां च तीर्थपैः ॥२५१॥ । नंदीश्वर द्वीपगत चैत्यवत् सकलं स्मृतम् ।
पीठिकादौ विशेष सतु प्रोक्तोऽत्राग्रेऽपि वक्ष्यते ॥२५२॥ . यह पूर्व में कही मणि पीठिका और आगे कही हुई सभा के अर्हद जिनालयों का, उसके द्वार, उसके मण्डप, स्तूप वृक्षादि इन सबका प्रमाण तीर्थ पतियों । नंदीश्वर द्वीप के चैत्य के समान कहा है । पीठिका आदि में जो कुछ विशेषता है। वह इस स्थान पर कहा गया है । और आगे भी कहा जायेगा । (२५१-२५२)
एवं सभा सुधर्माख्या, लेशतो वर्णिता मया ।
वैमानिक विमानेषु, सिद्धान्तोक्तानुसारतः ॥२५३॥
इस तरह से विमानिक देवताओं का विमान में रही सुधर्मा सभा का संक्षिप्त वर्णन सिद्धान्त अनुसार से मैंने किया है । (२५३) ।
तस्याः सौधाः सभाया, अर्थशान्यां भवेदिह ।
अर्ह दायतनं नित्यमत्यन्तविततधुति ॥२५४॥
उस सौधर्म सभा के ईशान कोन के अन्दर अरिहंत परमात्मा का हमेशा अति प्रकाशमान जिनालय होता है । (२५४)