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________________ (३२०) स्वर्ण रूप्यमयास्तासु, फलका नागदन्तकैः । माल्य दामान्चितैर्युक्ताः स्युर्गोमानसिका अपि ॥२३६॥ वह रत्नमय पीठिका ऊपर स्वर्ण-चान्दीमय तख्ते लगे होते हैं जो हाथी दांत के खूटे से युक्त होती है । तथा छोटी बड़ी सुन्दर मालाओं से युक्त गोमानसिका (वस्तु विशेष) भी होता है । (२३६) तथैव तावत्य एव, शय्या रूपास्त्विमा इह । . ... फलका नागदन्ताढया, घटयो धूपस्य तेषु च ॥२३७॥ . और इसी तरह से जितनी ही शय्या रूप पट्टा हो, वह भी नागदंत-हाथीदांत से युक्त होता है । और उस प्रत्येक शय्या पर धूपवाटिका होती हैं । (२३७) तस्याः सौधाः सभायाः मध्ये च मणिपीठिका। उपर्यस्या माणवकश्चैत्यस्तम्भो भवेन्महान् ॥२८॥ तुङ्ग षष्टिं योजनानि, विस्तृतश्चैक योजनम् । एकं योजनमुद्विद्धः शुद्ध रत्नप्रभोद्भट ॥२३६॥ उपर्यधो योजनानि द्वादश द्वादश ध्रुवम् । वर्जयित्वा मध्यदेशे, रैरूप्यफलकान्चितः ॥२४०॥ फलकास्ते वज़मय नामदन्तैलङ्कृताः । तेषु सिक्यकविन्यस्ता, वज्रः जाताः समुद्रकाः ॥२४१॥ एतेषु चार्हत्सक्थीनि, निक्षिपन्त्यसकुत्सुराः । प्राच्यानि च विलीयन्ते कालस्य परिपाकत् ॥२४२॥ . उस सुधर्मा सभा के मध्य विभाग में मणि पीठिका है और उसके ऊपर माण वक नाम का महान चैत्य स्तंभ है, जो ६० योजन ऊंचा, एक योजन विस्तार वाला एक योजन गहरा है और शुद्ध रत्न की प्रभा से अत्यन्त सुशोभनीय है । इस माणवक चैत्य स्तंभ के ऊपर और नीचे बारह-बारह योजन छोड़कर मध्य प्रदेश में सोने व चांदी के पट्टे हैं वे पट्टे-तख्त वज्ररत्न की खूटों से अलंकृत हैं उसके ऊपर छीके में रखे वज्रमय डब्बे हैं और डब्बे के अन्दर देवता बारम्बार श्री अरिहंत परमात्माओं
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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