________________
(३१६)
प्रत्येक द्वार तथा प्रेक्षागृह मंडप के आगे मध्य विभाग में चैत्य स्तूप से युक्त चार मणिपीठिका होती है ।
प्रतिद्वारमथैतेभ्यः, स्तूपेभ्यः स्युश्चतुर्दिशम् । एकैका पीठिका स्तूपाभिमुखप्रतिमान्चिता ॥२३०॥
प्रत्येक द्वार में इस चैत्य स्तूप की चार दिशा में स्तूप के सन्मुख मुख वाली प्रतिमा से युक्त एक एक पीठिका होती है । (२३०)
तेषां च चैत्यस्तूपानां, पुरतो. मणिपीठिका ।। प्रतिद्वारं चैत्यवृक्षस्तत्र नानाद्रुमान्वितः ॥२३१॥
उस चैत्य स्तूपों के आगे मणि पीठिका होती है और वहां प्रत्येक द्वार पर विविध प्रकार के वृक्ष से युक्त चैत्य वृक्ष होते हैं । (२३१)
चैत्य वृक्षेभ्यश्च तेभ्यः, पुरतो मणि पीठिका । प्रतिद्वारं भवेत्तत्र, महेन्द्रध्वज उच्छ्रितः ॥२३२॥
पन्चवर्ण ह्रस्वके तुसहस्रालङ्कृतः स च । __ छत्रातिच्छत्र कलितस्तुङ्गो गगनमुल्लिख़न् ॥२३३॥
- उन चैत्य वृक्षों के आगे मणि पीठिका होती है और वहां प्रत्येक द्वार पर ऊंची महेन्द्र ध्वज होता है, वह ध्वज पंचवर्ण की छोटी-छोटी हजारों ध्वजाओं से अलंकृत है । छत्र बड़े छत्रों से युक्त है मानो गगन को चुम्बन करता हो ऐसा उत्तुंग-ऊपर उठा है । (२३२-२३३)
तस्यां सौर्धम्या सभायां, स्युर्मनोगुलिकाभिधाः । सहस्राण्यष्टचत्वारिंशद्रत्नमयपीठिकाः ॥२२४॥
उस सुधर्मा सभा के अन्दर मनोगुलिका नाम की अड़तालीस हजार रत्नमय पीठिकाएं होती हैं । (३४)
प्राक् प्रतीच्योः सहस्राणि तत्र षोडश षोडश ।।
अष्टाष्ट च सहस्राणि, दक्षिणोत्तरयोर्दिशोः ॥२३५॥
उन पीठिकाओं के पूर्व-पश्चिम दिशा में सोलह हजार और उत्तर दक्षिण दिशा में आठ-आठ हजार होते हैं । (२३५)