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________________ (३१६) पन्चाशीतिरमी सूत्रमते, तु सर्व संख्यया ।। सूत्रवृत्योर्विसंवादे, निदानं वेद तत्ववित्त् ॥२१३॥ ___ श्री राज प्रश्नीय सूत्र के मतानुसार प्रासादों की सर्व संख्या पचासी (८५) होती है । इस तरह सूत्र और टीका का विसंवाद का कारण है, अतः तत्व तो केवल ज्ञानी भगवन्त ही जान सकते हैं । (२१३) पन्चमाङ्गे द्वितीयस्य, शतस्योद्देशके ऽष्टमे । वृत्तौ चतस्रः प्रासाद परिपाटयः प्ररूपिता ॥२१४॥ एवं चात्र मत त्रयं । पंचमाग श्री भगवती. सूत्र के दूसरे शतक के आठवें उद्देश की टीका में प्रासाद की चार श्रेणि कही है । इस तरह से इस विषय में तीन मत होते हैं । विचार सप्ततौ तु महेन्द्र सूरिभिरेव मुक्तं - "ओआरि अलयणंमी, पहुणो पण सीइ हुंति पासाय । तिसय इगचत्त कत्थइ कत्थइ पणसट्टी तेरसयं ॥२१५॥ पण सीई इगवीसा पणसी पुण एगचत्त तिसईए। . तेर समय पणसट्ठा तिसई इगचत्त पइककुहं ॥२१६॥" । विचार सप्ततिका में आचार्य श्री महेन्द्र सूरि जी महाराज ने इस तरह कहा है 'उपकारिकालयन (पीठिका) ऊपर स्वामी देव' के ८५ प्रासद है किसी ग्रन्थ में ३४१ और किसी ग्रंथ में १३६५ प्रासाद कहे हैं । (२१५) ८५ की श्रेणि प्रत्येक दिशा में २१ प्रासाद है । ३४१ की श्रेणि में प्रत्येक दिशा में ८५ प्रासाद हैं । और १३६५ की श्रेणि में प्रत्येक दिशा में ३४१ प्रासाद है । (२१६) . "विमानेषु प्रथमं प्राकारसतस्य सर्वमध्ये उपरिकालयनं पीठि के त्यर्थः तस्यां सर्व मध्ये प्रभोः पन्चाशीतिः प्रासादाः, कुत्रापि विमानस्यो परिकालयने एक चत्वारिंशदधिकानि त्रीणि शतानि प्रासादाः, कुत्रापि पन्चषष्टयधिकानि त्रयोदश शतानि प्रासादाः एवं भेदत्रयमेवेति" विचार सप्ततिकावचूरौ । विचार सप्ततिका अवचूरी में कहा है कि “विमान में प्रथम किला होता है उसके ठीक मध्य में उपरिकालयन होता है । अर्थात् पीठिका होती है । उसके ठीक
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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