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________________ (३१५) प्रत्येकमेषां चत्वारः प्रासादा ये चतुर्दिशम् । द्वाषष्टि ते योजनानामद्वयो स्यु समुर्दिशम् ॥२०७॥ और उन प्रत्येक प्रासादों की भी चारों दिशा में चार-चार प्रसाद है वे साढ़े बासठ ६२ १/२ योजन ऊंचे होते हैं । (२०७) एषामपि परीवार प्रासादस्ते चतुर्दिशम् । योजनानां स्युः सपादामेकत्रिंशतमुच्छ्रिताः ॥२०८॥ इन प्रत्येक के भी परिवार प्रासाद के चारों तरफ होते हैं और वे सवा इक्तीस (३१ १/४) योजन ऊंचे होते हैं । (२०८) तेषामपि परिवार प्रासादाः स्युः समुच्छ्रिताः ।। .. योजनानि पन्चदश, सार्द्धं क्रोश द्वयं तथा ॥२०६॥ उसके भी चार-चार परिवार वाले प्रासाद है जो कि पंद्रह योजन अढाई .. कोस ऊंचे होते हैं । (२०६). सर्वेऽप्यमी स्युः प्रासाद, निजोच्चत्वार्द्धविस्तृताः। एवं च पन्च प्रासाद परिपाट्यः प्रकीर्तिताः ॥२१०॥ - ये सभी प्रासाद अपनी ऊंचाई से आधी चौड़ाई वाले हैं इस तरह से प्रासाद की पांच श्रेणियां होने का कहा है । (२१०) ' एकैकस्यां च दिश्येकचत्वारिंश शतत्रयम् । त्रयोदश शताः पन्चषष्टयाढयाः सर्व संख्य याः ॥२११॥ - एक-एक दिशा में तीन सौ इकतालीस (३४१) प्रासाद है और कुल मिलाकर तेरह सौ पैंसठ संख्या होती है । (२११) . राजप्रश्नीय टीका या, अभिप्रायोऽयमीरितः । तत्सूत्रे तु तिस्त्र एव, परीपाटयः प्ररूपिताः ॥२१२॥ यह अभिप्राय श्री राज प्रश्नीय सूत्र की टीका का कहा है । इसके सूत्र में . तो प्रासाद की तीन श्रेणि ही कही है । (२१२)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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