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(३०७) किंचिदेषां विमानाना, मध्येमिन्वन् विगाहते । क्रमैस्तृतीप्रैः षण्मास्या, किंचित्तुनावगाहते ॥१६१॥
१- काम, २- कामावर्त, ३- काम प्रभ, ४- काम कान्त, ५- कामवर्ण, ६- कामलेश्या, ७- कामध्वज, ८- कामसित, ६- कामकूट १०- कामशिष्ट, ११- कामोत्तरावतंसक, इन ग्यारह विमानों को तीसरे कदम से माप करता कोई देव छ: महीने में अवगाही कर सकता है तो कोई उसे अवगाही नहीं कर सकता है। (१५६-१६१)
विजयं वैजयन्तं च, जयन्तमपाजितम् । विमानं किंचिदप्येषु, मिन्वन्नैवावगाहते ॥१६२॥ षड्भिर्मासैः क्रमैस्तुर्यैः, सातुर्यः स निर्जरः । मानमेवं विमानानामुक्तं वैमानिकार्चितैः ॥१६३॥ युग्मं ।
विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित इन विमानों को चौथे प्रकार के कदम से माप करते चतुर देव छ: महीने में कोई अवगाही नहीं कर सकता है। इस तरह वैमानिक देवों से पूजित श्री जिनेश्वर भगवन्त ने कहा है । (१६२-१६३)
तथा च तंद्ग्रंथ : "अत्थिणं भंते ! विमाणइं सोत्थियाइं जावसोत्थोत्तर वडिं सयाई ? हंता अत्थि, ते णं भंते ! विमाणा केमहालया प० ? गोयम ! जावइयं च णं सूरिए उदेइ जावइअं चणं सूरिए अत्थमेइ एवइयाइं तिन्नि ओवासंतराइं अत्थेगइ यस्स देवस्स एगे विक्कमे सिया, से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव दिव्वाए देव गतीए विई वयमाणे२ जाव एगाहं वा दुयाहं वा उक्कोसेणं छम्मासे वीई वएज्जा, अत्थेगइयं विमाणं विईवइज्जा, अत्थे गइयं विमाणं नो विईवइज्जा" इत्यादि ।
इस सम्बन्धी आगम में कहा है कि - हे भन्ते ! स्वस्तिक से स्वस्तिकोत्तरावतंसक नाम तक के विमान है ? हा । है। भंते ! विमान कितने बड़े है ? हे गौतम ! जितने में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक का जो अन्तर होता है, उससे तीन गुणा करने से देव का एक पराक्रम (एक बड़ा कदम) होता है । वह देव उस प्रकार की उत्कृष्ट अति तेज और दिव्य गति से चलता है एक दिन दो दिन यावत् उत्कृष्ट से