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________________ (३०६) ततः स्वस्तिकशिष्टाख्यं१० विमानंदसमं भवेत् । एकादशं स्वस्तिकोत्तरावतंसकमीरितं११ ॥१५४॥ षड् भिर्मासैः क मैरधैर्मिन्वानोनावगाहते । एषां मध्ये विमानानां, किंचित्किचित्तु गाहते ॥१५५॥ इस प्रकार से १स्वस्तिक, २- स्वस्तिकावत, ३- स्वस्तिक प्रभ, ४- स्वस्तिक कान्त, ५- स्वस्तिक वर्णक,६- स्वस्तिक लेश्या, ७- स्वस्तिक ध्वज, ८- स्वस्तिक सित, ६- स्वस्तिक कूट, १०- स्वस्तिक शिष्ट, ११- स्वस्तिकोत्तरवंत सक। इन ग्यारह जात के विमान को प्रथम कदम से मापने वाला देव कई विमानों को छह महीने में अवगाही कर सकता है तो कईयों को अवगाही नहीं हो सकता है । (१५२-१५५) अर्चि२ स्तथा ऽर्चि रावर्त२ मर्चिः प्रभ३ मथापरम्। अर्चिः कान्त४ मर्चिवर्ण५ मर्चिःलेश्यां६ तथा परम् ॥१५६॥ अर्चि ज७ मर्चिः सित,८मर्चिः कूटं ततः परम्। अर्चिः शिष्ट१० मर्चि रूत्तरावतंसक मन्तिमम्११ ॥१५७॥ किचिद्विमानेष्वेतेषु, भिन्वन्नैवावगाहते । क्रमैर्द्वितीयैः षण्मास्या, किंचित्पुनर्विगाहंते ॥१८॥ १- अर्चि, २- अर्चिरावत, ३- अर्चि:प्रभ, ४- अर्चिकान्त, ५- अर्चिवर्ण, ६- अर्चिलेश्या, ७- अर्चिर्ध्वज,८-अर्चि: सित, ६- अर्चिः कूट, १०- अर्चिः शिष्ट और ११- अर्चिरूत्तरावतंसक, ये ग्यारह विमानों को दूसरे प्रकार के कदम से मापते कोई देव, कोई विमान छ: महीने में अवगाही कर सकते हैं, तो कोई अवगाही नहीं कर सकता है । (१५६-१५८) कामं कामवतमेव, कामप्रभमथापरम् । कामकान्तं कामवर्णं, कामलेश्यः ततः परम् ॥१६॥ कामध्वजं कामसितं, कामकूटं भवेत्परम् । कामशिष्टं तथा कामोत्तरावतंसकाभिधम् ॥१६०॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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