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________________ (३०२) पूर्वाचार्यों ने जिस तरह से सौधर्मादि देवलोक में विमानों का प्रमाण अन्य रूप में कहा है वह अब कहते हैं । (१२६) कर्क संक्रान्तिधस्त्रे सदुदयास्तानतरं रवे । योजनानां सहस्राणि, चतुर्नवतिरीरितम् ॥१२७॥ षड् विंशाश्च पन्चशताः एकस्य योजनस्य च । षष्टिभागा द्विचत्वारिंशदस्मिस्त्रि गुणां कृते ॥१२८।। लक्षद्वयं योजनानां त्र्यशीतिश्च सहस्रकाः । साशीतयः शताः पन्च, षष्टयंशाः षट् सुरक्रमः ॥१२६॥... कर्क संक्रान्ति के दिन सूर्य का उदय और अस्त का अंतर-परिक्रमा चौरानवे हजार पांच सौ छब्बीस योजन और बयालीस में साठ अंश.६४५२६-४२। ६० योजन होता है और उसे तीन द्वारा गुणा करने से दो लाख तिरासी हजार पांच सौ अस्सी और साठ छ: अंश (२८३५८०-६/६०) योजन होता है । (१२७-१२६) सूर्योदयास्तान्तरेऽथ, प्रागुक्ते पन्चभिर्हते ।, . पूर्वोदितात्क्रमात्प्रौढः, क्रमो दिव्यो भवेत्परः ॥१३०॥ . स चायं - चतुर्लक्षी योजनानां, द्वि सप्तितिः सहस्त्र काः । षट्शती च त्रयस्त्रिंशा, षट्यंशास्त्रिंशदेव च ॥१३१॥ पूर्व कहे सूर्य उदय अस्त के अन्तर की संख्या को पांच से गुणा करने पर चार लाख बहत्तर हजार, छ: सौ तैंतीस योजन साठ में तीस अंश ४७२६३३- ३०/६० योजन होता है और जो दूसरी बड़ी दिव्यगति है । वह दिव्य कदम पूर्व में कहे है उससे अधिक बढे (प्रौढ़) होते हैं । (१३०-१३१) उदयास्तान्तरे भानोः, सप्तभिर्गुणिते भवेत् । दिव्य : क्रम स्तृतीयोऽयं पौढ : पूर्वोदितद्वयात् ॥१३२॥ षट् लक्षाण्येक षष्टिश्च, सहस्राणि शतानि षट् । षडशीतिर्योजनानां, चतुः पन्चाशदंशकाः ॥१३३॥ पूर्व में कहे अनुसार सूर्य के उदय अस्त के आन्तर को सात से गुणा करने से छः लाख इकसठ हजार, छ: सौ छियासी योजन और साठ में चौवनं अंश
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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