________________
(३०१). इन दो देवलोक में जो प्रथम प्रतर है उसमें ऊडु नामक जो ऐन्द्रक-इन्द्रक विमान है, उसकी लम्बाई-चौड़ाई पैंतालीस लाख योजन की कही है । उसकी परिधि मनुष्य क्षेत्र के समान समझ लेना चाहिये। क्योंकि मनुष्य लोक की भी पैंतालीस लाख योजन है । (११६-१२०) · एवं च - सिद्ध क्षेत्रमुडु नामैन्द्रकं नुक्षेत्रमेवच ।
सीमन्तो नरकावासश्चत्वारःसद्दशाइमे ॥१२१॥ व्यासायाम परिक्षेपै रूपर्युपरि संस्थिताः ।
दृष्टा केवलिभिर्ज्ञानदृष्टि दृष्टि त्रिविष्टिपैः ॥१२२॥
इसी ही तरह से सिद्ध क्षेत्र-सिद्ध शिला, ऊडु नाम का इन्द्रक विमान है, मनुष्य क्षेत्र और सीमन्त नामक नरक वास, इन चार की लम्बाई-चौड़ाई और परिधि से समानता है । और सब एक ही श्रेणि में एक-एक ऊपर रहे हैं । वह ज्ञान दृष्टि से तीन जगत को देखने वाले केवली भगवन्तों ने कहा है । (१२१-१२२) . . अन्येषां तु विमानानां, केषांचिन्नाकायोरिह ।
व्यासायाम परिक्षेप मानमेवं निरूपितम् ॥१२३॥ . इन दोनों देवलोक में दूसरे कितने विमानों का आयाम लम्बाई विस्तार परिधि का प्रमाण इसी तरह से कहा है । (१२३) ।
जम्बूद्वीपं प्रोक्तारूपं यया गत्यैकविंशतिम् । ‘वारान् प्रदक्षिणीकृर्यात्सुरश्चप्पुटिकात्रयात् ॥१२४॥ षण्मासान् यावदुत्कर्षात् तया गत्या प्रसर्पति ।
कानि चित्स विमानानि, व्यति व्रजति वा नवा ॥१२५॥ · पहले जिसका वर्णन किया है उस जम्बू द्वीप के कई देव तीन चुटकी मात्र के समय में ही जिस गति द्वारा इक्कीस बार प्रदक्षिणा दे सकते हैं, उसी उत्कृष्ट गति से छ: महीने तक गमन करने पर कई विमानों का पार प्राप्त कर सकते, और कई तो पार भी नहीं प्राप्त कर सकते हैं । (१२६)
अथापर प्रकारेण, विमान मानमुच्यते । सौधर्मादिषु नाकेषु, यथोक्तं पूर्व सूरिभिः ॥१२६॥