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________________ (२६७) आकार वाले, कई स्वस्तिका आकार से कई श्रीवत्स आकार वाले होते हैं तो कोई पद्म के आकार वाले है । इस तरह विविध प्रकार से पुष्पावकीर्ण विमान रहते हैं । (६३-६५) . प्राकारेण परिक्षिप्ता, वृत्ताः पंक्तिविमानकाः । द्वारेणैकेन महता, मण्डिताः पिण्डितश्रिया ॥६६॥ पंक्ति में रहे गोलाकार विमान सुन्दर एक बड़ा द्वार वाला और किले से युक्त होता है । (६६) . त्र्यस्त्राणां तु विमानानां, यस्यां वृत्त विमानकाः । तस्यां दिशि वेदिका स्यात्प्राकारः शेषदिक्षु च ॥१७॥ मुण्डप्राकाररूपैव, वेदिका तु भवेदिह । द्वाराणि च त्रिकोणेषु, त्रीण्येवेति जिनैर्मतम् ॥१८॥ त्रिकोण विमान की जिस दिशा में वृत्त विमान है, उस दिशा में वेदिका होती है, जबकि शेष दिशा में प्राकार-परकोटा दीवार होती है, और वेदिका भी नीचे किले समान होती है और इन त्रिकोण विमानों में द्वार तीन होते हैं इस तरह श्री जिनेश्वरं भगवान ने कहा है । (६७-६८) चतुर्दिशं वेदिकाभिश्चतुरस्रास्तुचाखः । स्फारैारैश्चतुर्भिश्च, चतुर्दिशमलताः ॥६६॥ ___ चोरंस विमान चारों दिशा में वेदिका से सुन्दर होता है और चार दिशा में चमकते चार द्वारों द्वारा शोभायमान होता है । (६६) स्वरूपं किंचन ब्रूमः सौधर्मेशाननाकयोः । विमानानामथो जीवाभिगमादि श्रुतोदितम् ॥१०॥ अब सौधर्म और ईशान प्रथम-दूसरे देवलोक के विमानों का कुछ स्वरूप श्री जीवाभिगम आदि श्रुत में कहे अनुसार वर्णन करता हूं । (१००) ... विमानानामत्र पृथ्वी, धनोदधिप्रतिष्ठिता । स्त्यानीभूतोदकरूपः ख्यात एव धनोदधि ॥१०१॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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