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(२६६) . - यथा करतले कश्चिन्निम्नः कश्चितथोन्नतः । देशस्तथा विमानानामेनयोर्निम्नतोन्नती ॥६२॥
जैसे हथेली में कोई भाग ऊंचा होता है, कोई भाग नीचा होता है, उसी तरह दोनों देवलोक के विमानों की ऊंचाई-नीचाई समझ लेना । (६२)
तथाऽऽहु - "सक्कस्स णं भंते ! देविंद स्स देव रण्णो विमाणोहिं तो ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो विमाणो ईसिं उच्चयरा ईसिं उन्नययरा ।" इत्यादि भगवती सूत्र शतक ३१ उद्देश वृत्ति ।' .
कहा है कि - 'देवता का इन्द्र, देवों का राजा शक्र महाराज के विमानों से ईशानेन्द्र के विमान थोड़े ऊंचे और कुछ विशिष्ट रूप है ।' इत्यादि भगवती सूत्र में शतक ३।१ उद्देश वृत्ति में आया है ।' - इदमेवमनसिविचिंत्यतत्वार्थ भाष्यकारैरूक्तं-"सौधर्मस्यकल्पस्योपरि ऐशानः कल्पः ऐशानस्योपरिसनत्कुमारः,सनत्कुमारस्योपरिमाहेन्द्र इत्येवमाव सर्वार्थ सिद्धा" दिति । . इसी ही पदार्थ को मन में चिन्तन कर तत्वार्थ भाष्यकार ने कहा है - "सौधर्म देवलोक के ऊपर-श्रेष्ठ ईशान कल्प है, ईशान देवलोक से श्रेष्ठ सनत्कुमार देवलोक है । सनत्कुमार देवलोक के ऊपर-श्रेष्ठ माहेन्द्र देवलोक है इसी तरह से सर्वार्थ सिद्ध विमान तक समझ लेना चाहिए।"
वृत्ताः स्युर्व लयाकारास्त्र्यस्त्राः शृङ्गाटकोपमाः । .. भवन्त्यक्षाटकाकाराश्चतुरस्रा विमानकाः ॥६३॥ ये तु पुष्पावकीर्णाख्या, विमानका भवन्ति ते । । नन्द्यावर्तानुकृतयः केचिदन्येऽसि संस्थिता ॥६४॥ अपरेस्वस्तिकाकाराः श्रीवत्साकृतयः परे । पद्माकाराः केचिदेवं, नानाकाराः स्थिता इति ॥६५॥
गोल विमान वलयाकार वाले होते हैं । त्रिकोण विमान सिंघाडे के समान होता है, और चोरस विमान अक्षारक (पासे) के आकार वाला होता है और जो पुष्पावकीर्ण विमान होता है उसमें से कई नंद्यावर्त के आकार से कई तलवार के