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होते हैं। ईशान देवलोक में गोलाकार विमान दो सो अड़तीस होते हैं। (८४-८५)
त्रिचतुश्कोणसंख्या तु, सौधर्मवद्भवेदिह । अष्टादशोत्तराण्येवं शतानि द्वादशाखिला ॥८६॥ पुष्पावकीर्णकानां तु लक्षाणां सप्त विंशतिः । सहस्राण्यष्टनवतिद्धर्यशीतिः सप्तशत्यपि ॥८७॥ लक्षाण्यष्टाविंशतिर्या, सर्व संख्या पुरोदिता ।। एषां योगेन सा प्राज्ञैर्भावनीया बहुश्रुतः ॥८॥
त्रिकोण और चतुष्कोण विमानों की संख्या सौधर्म देवलोक के समान है सर्व मिलाकर तीन प्रकार के विमान की कुल संख्या बारह सौ अठारह (१२१८) होती है। पुष्पावकीर्ण विमानों की संख्या सत्ताईस लाख अठानवे हजार सात सौ बयासी. (२७,६८,७८२) है । इस तरह से दोनो प्रकार के विमानों की संख्या का कुल जोड करने से पूर्वोक्त अट्ठाईस लाख विमानों की संख्या बहुश्रुत से जानना चाहिए । १२६६+२७,६८,७८२ = २८००००० होता है । (८६ से ८८) । तत्रापि - सौ धर्मेन्द्र विमानेभ्य ईशानस्य सुरेशितुः।
। विमाना उच्छ्रिता: किंचित्प्रमाणतो गुणैरपि ॥६॥ उसमें भी सौंधर्मेन्द्र के विमान से ईशान इन्द्र के विमान प्रमाण और गुण से कुछ ऊंचे है । (८६)
यत्तु पन्चंशतोच्चत्वं, प्रासादानां द्वयोरपि । स्थूल न्यायात्तदुदितं, ततस्तन्न विरूध्यते ॥६॥
दोनो देवलोक के मंदिरों की ऊंचाई जो पांच सौ योजन की कही है वह सामान्य से कहा है । जिससे उसमें विरोध नहीं है । (६०)
वस्तुतः सौधर्मगत प्रासादोभ्यः समुन्नताः । ईशान देवलोकस्य, प्रासादाः सुंदरा अपि ॥६१॥
वस्तुत: तो सौधर्म देवलोक में रहे मंदिरों से ईशान देवलोक के मंदिर ऊंचे तथा सुन्दर भी है । (६१)