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(२६३) पंक्तिगत और पुष्पावकीर्ण विमानों की सर्व संख्या सौधर्म और ईशान देवलोक में साठ लाख (६०,००,०००) कही है उसमें बत्तीस लाख विमान सौधर्म देवलोक के है और अट्ठाईस लाख विमान ईशान देवलोक के हैं । (७२-७३) .
अथैतयोसिवयोः सम्बन्धीनि पृथक् पृथक् । पातेयानि विमानानि, प्रोक्तान्येवं पुरातनैः ॥७४॥
अब इन दोनों सौधर्म और ईशान के इन्द्रों के पंक्तिगत विमान का पृथकपृथक करण पूर्व महर्षिओं ने इस तरह से कहा है । (७४)
तथाहुस्तपागच्छ पतयः श्री रत्नशेखर सूरयः श्राद्धविधि वृत्तो -
"दक्षिणस्यां विमानाये,सौधर्मे शस्य तेऽखिलाः। • उत्तरस्यां तु ते सर्वेऽपीशानेन्द्रस्य सत्तया ॥७॥ पूर्वस्यामपरस्यां च, वृत्ताः सर्वे विमानकाः । त्रयोदशापीन्द्रकाश्च, स्युः सौधर्मसुरेशितुः ॥६॥ पूर्वापरदिशोस्त्रयश्चतुरस्राश्च ते पुनः ।
सौधर्माधिपतेरर्द्धा, अद्धा ईशानचक्रिणः ॥७७॥" . तपागच्छाधिपति श्री रत्नशेखर सूरिश्वर जी महाराज ने श्राद्धविधि टीका में कहा है कि - 'दक्षिण दिशा में रहे सर्व विमान सौधर्मेन्द्र के है और उत्तर दिशा में रहे सर्व विमान ईशानेन्द्र की सत्ता में है । पूर्व और पश्चिम दिशा के अन्दर पंक्ति में रहे सर्व गोलाकार विमान और तेरह इन्द्रक विमान भी सौधर्म इन्द्र के है । जबकि पूर्व और पश्चिम दिशा की पंक्ति में रहे जो त्रिकोण और चोरस विमान है, उसमें से आधे सौधमेन्द्र के है और आधे ईशान इन्द्र के हैं ।'
'संग्रहणी वृत्तावपि - "जे दाहिणे इंदा दाहिण ओ आवली भवे तेसिं । जे पुण उत्तर इंदा उत्तरओ आवली तेसिं ॥८॥ पुष्वेण पच्छिमेण य सामन्ना आवली भवे तेसिं। जे पुण वट्टविमाण मझिल्ला दाहिणिल्लाणं ॥६॥