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- सौधर्म और ईशान देवलोक में नौ सो बावन (६५२) गोलाकार विमान है, नौ सौ अट्ठासी (६८८) त्रिकोण विमान है और नौ सौ बहत्तर (६७२) चोरस विमान है । इन सर्व विमान की तेरह इन्द्रक विमानों के साथ गिनती करते पंक्तिगत विमानों की सर्व संख्या दो हजार नौ सौ पच्चीस (२६२५) होती है । (६४-६६)
चतसृणा च पूर्वोक्त पक्तिनामन्तरेष्विह । सर्वेष्वपि प्रस्तटेषु, प्राचीमेकां दिशं विना ॥६७॥ पुष्पावकीर्णाकाः संति विमाना विलसद्रुचः । .. सौधर्मेशानयुगले, भवन्ति सर्वसंख्यया ॥६८॥ एकोनषष्टिर्लक्षाणि, ते सप्तनवतिस्तथा । .. सहस्राणि तदुपरि, केवला पन्चसप्ततिः ॥६६॥ निर्व्यवस्थाः स्थिता एते, विकीर्ण मुष्प पुन्जवत् ।
इतस्ततः पुष्पावकीर्णा इति विश्रुताः ॥७०॥
पहले कही हुई चार पंक्तियों के अन्तर में प्रत्येक प्रतरों में एक पूर्व दिशा को छोडकर अन्य दिशाओं में पुष्पावकीर्ण विमान है । विलसत कान्ति वाले ये विमान सौधर्म-ईशान मिलाकर दोनों देवलोक के सर्व संख्या उनसठ लाख सत्तानवे हजार पचहत्तर (५६, ६७०७५) होते हैं । ये सभी विमान अव्यवस्थित रूप में तितर-बितर पुष्प के ढेर के समान अलग-अलग इधर-उधर रहे है, इससे पुष्पावकीर्ण रूप में प्रसिद्ध है । (६७ से ७०)
प्रतिप्रतरमेतेषां, पङक्तिप्राप्तविमानवत् ।
संख्या पुष्पावकीर्णानां न पृथक् क्वापि लभ्यते ॥७१॥ .
प्रत्येक प्रतरों में रहे पुष्पावकीर्ण विमानों की पृथक् संख्या पंक्ति में रहे विमान के समान कहीं पर भी प्राप्त नहीं होती । (७१) .
पडक्ति पुष्पावकीर्णाश्च, सर्व संकलिताः पुनः । ' सौधर्मेशानयोः षष्टिर्लक्षाणि स्युर्विमाना काः ॥७२॥ द्वात्रिंशत्तत्र लक्षाणि, गैधर्मस्य भवन्त्यमी । । लक्षाण्यष्टाविंशतिश्च, स्युरीशान-त्रिविष्टपे ॥७३॥ .