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(२६१) (२२०) होती है। और नौवें प्रतर की प्रत्येक पंक्ति में तीन प्रकार के विमान अठारह-अठारह होते हैं और सर्व संख्या, दो सौ सोलह विमान होते हैं । तथा दसवें प्रतर की प्रत्येक पंक्ति के अन्दर त्रिकोण और चोरस विमान अठारह-अठारह होते हैं और गोलाकार विमान सत्रह हैं । अत: इस प्रतर के सर्व मिलाकर दो.सौ बारह (२१२) विमान होते हैं। (५६-५६)
एकादशेऽथ प्रतरे, त्र्यस्त्रा अष्टादशोदिताः । चतुरस्त्राः सप्तदश, वृत्तास्तावन्त एव च ॥६०॥ द्विशत्यष्टाधिका सर्व संख्यया द्वादशेऽथ च । पक्तौ पङ्क्तौ सप्तदशप्रमितास्त्रिविधा अपि ॥६१॥ द्विशती चतुरधिका स्युस्तत्र सर्व संख्यया । त्रयोदशे प्रस्तटेऽथ वृत्ता भवन्ति षोडश ॥२॥ त्रिचतुष्कोणकाः सप्तदश सर्वे शतद्वयम् । सौधर्मेशानयोरेवं, स्वर्गयोः सर्व संख्यया ॥६३॥
ग्यारहवें प्रतर की प्रत्येक पंक्ति के अन्दर त्रिकोण विमान अठारह है, चोरस और गोलाकार विमान सत्रह-सत्रह होते हैं । इस प्रतर के सर्व विमान दो सौ आठ (२०८) होते हैं। तथा बारहवें प्रतर की प्रत्येक पंक्ति के अन्दर प्रत्येक तरह के सत्रह-सत्रह विमान होते हैं। अत: इस प्रतर में विमानों सर्व संख्या दो सौ चार (२०४) होते हैं । और तेरहवें प्रतर के अन्दर गोलाकार विमान सोलह होते हैं तथा त्रिकोण व चोरस विमान सत्रह-सत्रह होते हैं। इस प्रतर के कुल विमानों की संख्या दो सौ होती है। (६०-६३)
द्विपन्चाशदधिकानि, शतानि नव वृत्तकाः । त्रिकोणानां नव. शतान्यष्टाशीत्यधिकानि च ॥६४॥ चतुष्कोणा द्विसप्तत्याऽधिका नवशतीति च । सह संकलिता एते, त्रयोदशभिरिन्द्रकैः ॥६५॥ सर्वसंख्या पङ्क्तिगतविमानानां भवेदिह । द्वौ सहस्रौ नवशताधिको सपन्चविंशती ॥६६॥