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________________ (२६०) पन्चमे च प्रतिपङ्क्ति, त्रिकोणाः किल विंशतिः। चतुरस्राश्च वृत्ताश्च, पृथगेकोनविंशतिः ॥५२॥ शतद्वयं च द्वात्रिंशमस्मिस्ते सर्व संख्यया । षष्ठे च प्रतिपक्तयंते, त्रयेऽप्येकोनविंशतिः ॥५३॥ तथा पांचवे प्रतर के अन्दर चार पंक्ति में त्रिकोण विमान बीस है, और चोरस, गोलाकार विमान उन्नीस-उन्नीस है । और उस पंक्तिगत विमानों की सर्व संख्या दो सौ बत्तीस (२३२) होती है । (५२-५३) ... अष्टाविशे द्वे शते चास्मिन्नमी सर्व संख्यया । पडक्तौ पङ्क्तौ सप्तमे तु, वृत्ता अष्टादश स्मृताः ॥५४॥ एवं छठे प्रतर के अन्दर प्रत्येक पंक्ति में तीनों तरह के विमान उन्नीसउन्नीस है और उन सबकी संख्या दो सौ अट्ठाईस (२२८) होती है । (५४) एकोनविंशतिस्त्र्यनाश्च तत्र च । सर्वाग्रेण विमानानां, चतुर्विशं शतद्वयम् ॥५५॥ सातवें प्रतर की प्रत्येक पंक्ति में वृत्त-विमान अठारह है और त्रिकोणचतुष्कोण विमान उन्नीस-उन्नीस हैं । इससे सर्व संख्या मिलाकर दो सौ चौबीस (२२४) होती है । (५५) प्रतिपडक्त यष्टमे त्र्यम्राः, प्रोक्ता एकोनविंशतिः। वृत्ताश्च चतुरस्राश्चाष्टादश स्फुटम ॥५६॥ विशं शतद्वयं सर्व संख्ययाऽत्र भवन्ति ते । नवमे प्रतिपक्तयेते, विधाप्यष्टादशोदिताः ॥५७॥ अस्मिन् सर्व संख्यया तु, द्वे शते षोडशाधिके । दशमे प्रतिपङ्क्तयष्टादश त्रिचतुरस्रकाः ॥५८॥ वृत्ताः सप्तदशेत्येवं, विमाना: पङ्क्ति वर्तिनः । द्विशती द्वादशोपेता, सर्वाग्रेण भवन्त्यमी ॥५६॥ आठवें प्रतर के प्रत्येक पंक्ति के अन्दर त्रिकोण विमान उन्नीस होते हैं । गोलाकार और चोरस विमान अठारह-अठारह है और सर्व संख्या दो सौ बीस
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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