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________________ (२८६) यस्राणि चतुरस्राणि, प्रति पड्क्तयेक विंशतिः । प्रथम प्रस्तटे वृत्त विमानानि च विंशतिः ॥४५॥ प्रथम प्रतरे पक्ति विमानाः सर्व संख्यया । अष्टचत्वारिंशतैवमधिकं शतयोर्द्वयम् ॥४६॥ प्रथम प्रतर में प्रत्येक पंक्ति में त्रिकोण और चोरस इक्कीस-इक्कीस विमान होते हैं और बीस गोलाकार विमान होते है तथा वह प्रथम प्रतर के विमानों की सर्व संख्या दो सौ अडतालीस (२४८) होती है । (४५-४६) द्वितीय प्रतरे पक्तो पड्क्तो त्र्यस्रा विमानका । एक विंशतिरन्ये च, विंशतिर्विंशतिः पृथक ॥४७॥ चतुश्चत्वारिंशमेव, विमानानां शतद्वयम् । द्वितीय प्रतरे पङ्क्तिगतानां सर्व संख्यया ॥४८॥ दूसरे प्रतर के अन्दर प्रत्येक पंक्ति में त्रिकोण विमान इक्कीस है और चतुष्कोण तथा त्रिकोण विमान बीस बीस है और इस तरह दूसरे प्रतर की पंक्तिगत विमानों की सर्व संख्या दो सौ चवालीस (२४४) होती है । (४७-४८) तात्तीयीके प्रस्तटे तु, चतसृष्वपि पडक्तिषु । • वृतत्र्यस्र चतुरस्रा, विमाना विंशतिः पृथक् ॥४६॥ चत्वारिंशत्समधिके, द्वे शते सर्वसंख्यया । प्रतरेऽथ तुरीयेऽपि निखिलास्वपि पङ्क्तिषु ॥५०॥ तीसरे प्रतर के अन्दर चार पंक्ति में त्रिकोण, चतुष्कोण और वृत्त विमान की संख्या बीस-बीसं है । अतः तीसरे प्रतर में चारों पंक्ति के सर्व विमानों की संख्या दो सौ चालीस (२४०) होती है । (४६-५०) एकोनविंशतिवृत्तास्त्र्यबश्च चतुरस्रकाः । विंशतिर्विंशतिः सर्वे, ते पत्रिशं शतद्वयम् ॥५१॥ और चौथे प्रतर के अन्दर चारों पंक्ति में गोलाकार विमान उन्नीस है और त्रिकोण-चोरस विमान बीस बीस है । अत: उस पंक्तिगत विमान की सर्व संख्या दो सौ छत्तीस (२३६) होती है । (५१)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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