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________________ (२८८) यदाह - "वर्ल्ड वट्टस्सुवरि तंसं तंसस्स उप्परि होइ। चउरंसे चउरंसं उड्डं च विमाण सेढीओ ॥३६॥" अत: कहा है कि - गोलाकार के ऊपर गोलाकार, त्रिकोण के ऊपर त्रिकोण, चोरस के ऊपर चोरस इस तरह ऊर्ध्व श्रेणिबद्ध विमान रहे हैं । (३६) द्वाषष्टि१ रेकषष्टिश्च२, षष्टि३ रेकोनषष्ट किः। तथाष्ट५ सप्त६ षट् पन्च८ चतुः स्त्रि१० ककाधिकाः ॥४०॥ .. पन्चाशदथ पन्चाश१३ त्सोधर्मेशानयोः क्रमात् । प्रतरेषु विमानानां, पङ्क्तौ पङ्क्तौ मितिर्मता ॥४१॥ सौधर्म और ईशान देवलोक के तेरह प्रतरों में क्रमशः एक-एक पंक्ति में विमानों की संख्या कही है - वह इस तरह पहले मैं ६२, दूसरे में ६१, तीसरे में ६०, चौथे में ५६, पांचवे में ५८, छठे में ५७, सातवें में ५६, आठवें में ५५, नौवें में ५४, दसवें में ५३, ग्यारहवें में ५२, बारहवें में ५१, और तेरहवें में ५० विमानों की संख्या होती है। (४०-४१) स्व स्व पक्ति विमानानि, विभक्तानि त्रिभिस्त्रिभिः। त्रयस्राणि चतुरस्राणि, वृत्तानि स्युर्यथाक्रमम् ॥४२॥ त्रिभिर्विभागे शेषं चेदेकमुद्वरितं भवेत् । क्षेप्यं येस्त्रेऽथ शेषे द्वे, ते त्र्यत्रचतुरस्रयोः ॥४३॥ स्व-स्व पंक्ति के विमान तीन-तीन विभाग में बांट गये है । १- त्रिकोण, २चोरस तथा ३-गोलाकार । प्रत्येक प्रतर गत विमान संख्या को तीन से भाग देने में यदि एक शेष रहे तो उस शेष त्रिकोन में मिलाना चाहिए । यदि दो शेषं रहे तो एक त्रिकोण और एक चोरस में गिनना चाहिए । (४२-४३) प्रतिपङ्क्तयत्र वक्ष्यन्ते, वृत्तत्रिचतुरसकाः । चतुर्गुणास्ते प्रतरे सर्वसंख्यया ॥४४॥ एक पंक्ति के त्रिकोण, चतुष्कोण विमानों की संख्या को चार से गुणा करने से प्रत्येक प्रतर-प्रतर के त्रिकोणादि विमानों की सर्व संख्या आती है । (४४) चारों दिशाओं में इन विमानों की श्रेणि है।
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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