SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२८७) वृत्ता विमानास्तेभ्योऽपि, पुनस्त्र्य स्त्रास्ततः पुनः। चतुरस्राः पुनर्वृत्ता पडिक्तरेवं समाप्यते ॥३३॥ सर्वप्रतरों में रहे इन्द्रक विमान सभी गोलकार आकृति वाले हैं उसके बाद चारों दिशा में रहे विमान त्रिकोणाकार रूप में है और त्रिकोणाकार के बाद विमान चोरस आकृति में । उसके बाद फिर गोलाकार विमान है, उसके बाद त्रिकोण है, उसके बाद चोरस आकृति के हैं और फिर गोलाकार है । इस तरह सम्पूर्ण पंक्ति पूर्ण होती है । (३१-३३). वृत्तत्र्यस्र चतुरस्रा, अग्रिम प्रतरेष्वपि । ज्ञेयाः क मेणानेनैवानुत्तर प्रतरावधि ॥३४॥ वृत्त-त्रिकोण और चौरस विमानों का यह क्रम आगे-आगे के प्रतर में भी जानना' । और इसी ही क्रम से अनुत्तर विमानों के प्रतर तक विमान जानना । (३४) यदुक्तं - "सव्वेसु पत्थडेसुं.मज्झे वट्ट अणं तरं तंसं । तयणंतरं चउरंसं पुणोबि वटुं तओ तंसं ॥३५॥" अतः कहा है कि - सर्व प्रस्तरों के मध्य में गोल, उसके बाद त्रिकोण उसके बाद चोरस, फिर गोलाकार और फिर त्रिकोण इत्यादि जानना । (३५) अधस्तन प्रस्तटेषु, ये ये वृत्तादयः स्थिताः । तेषा मूर्ध्व समश्रेण्या, सर्वेषु प्रतरेष्वपि ॥३६॥ वृत्तास्त्र्यस्त्रा श्चतुरस्रा, विमानाः संस्थिताः समे । ततः एवानुत्तराख्ये, प्रस्तटे स्युश्चतु र्दिशम् ॥३७॥ विमानानि त्रिकोणानि, वृत्तान्मध्य स्थितेन्द्रकात्। त्रिकोणान्येव सर्वासु, यद्भवन्तीह पडिक्तषु ॥३८॥ नीचे के प्रस्तरों में जो-जो गोलाकार आदि विमान रहे है उसके ऊपर समश्रेणी से सर्व प्रतरों में गोलाकार, त्रिकोण, चोरस विमान रहे है । और इसके लिए ही अनुत्तर देवलोक के चारों दिशा के विमान त्रिकोण है । क्योंकि सर्व-पंक्ति में मध्यस्थ गोलाकार इन्द्र के विमान के बाद त्रिकोण विमान चारों दिशा में होते हैं । (३६-३८)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy