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________________ (२७५) नक्षत्रों के विमानों की जघन्य स्थिति एक चतुर्थांश १/४ पल्योपम की है और उत्कृष्ट स्थिति आधा १/२ पल्योपम की कही गयी है । (१७६) तेषा पल्यस्य तुर्यांशो देवीनां स्थितिरल्पिका । उत्कृष्टा तु भवेत्तासां स एव खलु साधिकः ॥१८०॥ नक्षत्र के विमानों की देवियों की जघन्य स्थिति एक चतुर्थांश १/४ पल्योपम की है और उत्कृष्ट स्थिति साधिक एक चतुर्थांश १/४ पल्योपम की होती है । (१८०) स्थितिस्तारा विमानेषु, देवानां स्याल्लधीयसी. । पल्योपम स्याष्टमोऽशस्तुर्योऽशस्तु गरीयसी ॥१८१॥ स्थितिर्देवीनां तु तेषु, लध्वी दृष्टा जिनेश्वरैः । .. पल्यस्यैवाष्टमो भागो, गुर्वी स एव साधिकः ॥१८२॥ तारा के विमानों के देवों की जघन्य स्थिति पल्योपम के आठवें विभाग १/८ और उत्कृष्ट स्थिति एक चतुर्थांश १/४ पल्योपम की है और देवियों की जघन्य स्थिति एक अष्टमांश १/८ और उत्कृष्ट स्थिति साधिक एक अष्टमांश पल्योपम श्री जिनेश्वर भगवान ने देखा है । (१८१-१८२) एषु सूर्याश्चेन्दवश्च, सर्वस्तोका मिथः समाः । तेभ्यो भानि ग्रहासतेभ्यस्ताराः संजय गुणाः क्रमात् ॥१८३॥ पंच जातिय ज्योतिष्क में सूर्य चन्द सबसे थोडे संख्या में सबसे अल्प है और परस्पर समान संख्या वाले हैं । उस संख्या में संख्यात गुणा नक्षत्र है, उससे संख्यात गुणा ग्रह है और इससे संख्यात गुणा तारा समुदाय है । (१८३) एतेचन्द्रादयः प्रायः प्राणीनां प्रसव क्षणे । तत्तत्कार्योपक्रमे वा; वर्ष, मासाद्युपक्रमे ॥१८४॥ अनुकूलाः सुखं कुर्युस्तत्तंद्रा शिमुपागताः । प्रतिकूलाः पुनः पीडां, प्रथमन्ति प्रथीयसीम् ॥१८५॥ चन्द्र आदि ये ज्योतिषी प्राणी के जन्म समय में वह उस कार्य के प्रारंभ में अथवा तो वर्ष-मासादि के प्रारंभ में जो अनुकुल हो तो उस-उस राशी में गये
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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