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________________ (२७४) से उतरते मध्यम और जघन्य दोनों होती है । इस तरह से ग्रह के विमान आदि में भी दो प्रकार की स्थिति समझ लेनी चाहिए । (१७१-१७३) चान्द्रे विमाने देवीनां, स्थितिरूक्ता गरीयसी । पल्योपमार्द्ध पन्चाशत्संवत्सर सहस्रयुक् ॥१७४॥ चन्द्र विमान में देवियों की उत्कृष्ट स्थिति पचास हजार वर्ष युक्त आधा पल्योपम की कही गयी है । (१७४) स्थितिः सूर्य विमानेषु, देवीनां परमा भवेत् । अर्द्ध पल्योपमस्याब्दशतैः पन्चभिरन्विताम् ॥१७॥.. सूर्य विमान की देवियों की उत्कृष्ट स्थिति पांच सौ वर्ष युक्त आधा पल्योपम की होती है । (१७५) सूर्य चन्द्र विमानेषु, स्थितिरासां जघन्यतः । पल्योपम चतुर्थांशः प्रज्ञप्तो ज्ञानिपुङ्गवैः ॥१७६ ॥ सूर्य और चन्द्र विमान में देवों की जघन्य स्थिति एक चतुर्थांश १/४ पल्योपम होती है और उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम की कही है । (१७६) ग्रहाणां च विमानेषु देवनामल्पिका स्थितिः । पल्योपमस्य तुर्यांशो, गुर्वी पल्योपमं मतम् ॥१७७॥ ग्रह के विमानों में देवों की जघन्य स्थिति एक चतुर्थांश १/४ पल्योपम की है और उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम स्थितिर्देवीनां तु पल्योपमतुर्यलवो लघुः । तेषूत्कृष्टा तु निर्दिष्टा पल्यार्द्ध जगदीश्वरैः ॥१८॥ ग्रह के विमानों में देवियों की जघन्य स्थिति एक चतुर्थांश १/४ पल्योपम की है और उत्कृष्ट स्थिति आधा १/२ पल्योपम की श्री जिनेश्वर भगवान ने कहा है । (१७८) नक्षत्राणां विमानेषु, जघन्या नाकिनां स्थितिः । पल्योपम चतुर्थांशः पल्योपमार्द्धमुत्तरा ॥१७६॥ .
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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