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________________ (२७३) विजया वेजयन्ती च, जयन्ती चापराजिता । भवन्त्यमीषां सर्वेषामप्येतैरेव नामभिः ॥१६७॥ इसी तरह से ग्रह नक्षत्र और ताराओं के भी चार-चार अग्रमहिषियां होती हैं। उनके नाम इस प्रकार से हैं- १- विजया, २- वैजयन्ती, ३- जयंती और ४अपराजित। यही नाम की इन सर्व की अग्रमहिषियां होती है । (१६६-१६७) अथःचन्द्रविमानेऽस्मिन्, जघन्यानाकिनां स्थितिः। पल्योपमस्य तुर्यांश, उत्कृष्टाऽथ निरूप्यते ॥१६८॥ एक पल्योपमं वर्ष लक्षेणैकेन साधिकम् । जघन्याऽर्क विमानेऽपि,स्थितिश्चन्द्रविमानवत् ॥१६६॥ उत्कृष्टाब्द सहस्रेणाधिकं पंल्योपमं भवेत् । यद्यपि स्थितिरकेंन्द्वोः कनीयसौ न सम्भवेत् ॥१७०॥ . इन चन्द्र के विमानों में रहे देवताओं की जघन्य स्थिति एक चतुर्थांश १/४ पल्योपमं होती है, और उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम होती है । सूर्य विमान में भी जघन्य स्थिति चन्द्र विमान के समान होती है । और उत्कृष्ट स्थिति एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम की होती है । यद्यपि सूर्य अथवा चन्द्र के स्वयं को जघन्य स्थिति नहीं होती है । (१६८-१७०) तथाप्येषु विमानेषु, त्रिविधाः सन्ति नाकिनः । . विमान नायकाश्चन्द्रादयस्तत्सद्दशाः परे ॥१७१ ॥ परिवार सुराश्चान्ये, स्युरात्मरक्षकादयः । तत्राधीश्वरतत्तुल्यापेक्षया परमा स्थिति ॥१७२॥ जघन्यात्मरक्षकादिपरिच्छदव्यपेक्षया । एवं ग्रह विमानादिष्वपि भाव्यं स्थिति द्वयम् ॥१७३॥ फिर भी इन विमानों में तीन प्रकार के देवता होते हैं । १- विमान के अधिपति चन्द्र आदि २- उनके सामानिक देवता और आत्मरक्षक आदि दिवता होते हैं । वहां नायक तथा उनके सामानिक देवता की अपेक्षा से परम स्थिति होती है और आत्मरक्षकादि परिवार की अपेक्षा से जघन्य स्थिति होती है अर्थात् उत्कृष्ट
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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