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________________ . (२७१) लालित्य सभर, लीलापूर्वक अत्यंत विभ्रम को धारण करती अपने समान चार हजार देवियां को बनाती है । (१५५-१५६) तथोक्तं जीवाभिगम सूत्रे - "पभूणं ताओ एगमेगा देवी अन्नाइ चतारि देवी सहस्साइं परिवारं विउव्वित्तए।"इति । यत्तु जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रे - 'पभू णं ताओ एग मेगा देवी अन्न देवि सहस्सं विउव्वित्तए ।' इति उक्तं तदिदं मतान्तरं ज्ञेयम् ॥ __ श्री जीवाभिगम सूत्र में कहा है कि एक-एक देवी चार हजार देवियों का रूप बना सकती है । और जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में कहा है कि - उस चन्द्रमा की एक-एक देवी अन्य एक एक हजार देवियों का परिवार बना सकती है । इस प्रकार दोनों में मतान्तर समझना ।' . . . तदेतच्चन्द्रदेवस्यान्तःपुरं परिकीर्तितम् । सिद्धान्तभाषया चैतत्तुटिकं परिभाषितम् ॥१५७॥ इस प्रकार से चन्द्र देव के अंत:पुर की बात कही है, उसे आगम सिद्धान्त की परिभाषा में त्रुटिक कहलाता है । (१५७).. . उक्तच्च जीवाभिगम चूर्णो :- "त्रुटिकमन्तः पुरमपदिश्यते" इति । श्री जीवाभिगम की चूर्णि में कहा है कि - 'अंत:पुर अर्थात् त्रुटिका कहलाता है ।' :. . ज्योतिष्केन्द्रस्य सूर्यस्याप्येवमन्तःपुरस्थितिः । तावान् देवी परिवारों विकुर्वणाऽपि तावती ॥१८॥ ज्योतिष्केन्द्र सूर्य के अंत:पुर की स्थिति भी इसी तरह है देवी का परिवार भी उतना है । और रूप बनाने की संख्या भी उतनी ही जानना । (१५८) नाम्नाऽर्काग्रमहिष्यस्तु, प्रोक्ता स्तीर्थकंरैरिमाः । सूर्य प्रभा चातपाभाऽथार्चिाली प्रभङ्करा ॥१५६॥ सूर्य की अग्र महिषियों के नाम श्री तीर्थंकर देव ने इसी तरह से कहा है । १- सूर्यप्रभा, २- आत पाभा, ३- अर्चिमाली और ४- प्रभंकरा है । (१५६)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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