________________
(२७०) बड़ी पुत्रियां अरक्षुपुरी में रहती थी । उनके माता का नाम चन्द्र श्री आदि अपने नाम के अनुसार था उन्होंने पुष्प चूला साध्वी जी के पास में और श्री पार्श्वनाथ भगवान के हस्ते दीक्षा ली थी, परन्तु चारित्र की कुछ विराधना कर पाक्षिक आलोचना किए बिना और अन्त में संलेखना करके वहां से मर कर चन्द्र नामक विमान में चन्द्र की अग्रमहिषी रूप में उत्पन्न हुई है । जो अपने नाम के अनुसार नाम वाले सिंहासन पर शोभते है और उनका आयुष्य चन्द्र से आधा होता है। (१४८-१५१)
सूर्याग्रहमहिषीणामप्येवं चरितमूह्यताम् । किन्तु ता मथुरापुर्यामभूवन् पूर्वजन्मनि ॥१५२॥ ..
सूर्य की पट्ट देवियों का चरित्र भी इसी ही प्रकार का है, परन्तु पूर्व जन्म में मथुरा पुरी में रहने वाली थी । शेष सब पूर्व के समान है । (१५२)
एकैकस्या पट्टदेव्याः परिवारः पृथक् पृथक् ।। चत्वार्येव सहस्राणि, देवीनामुत्कटत्विषाम् ॥१५३॥ एवमुक्ता प्रकारे ण, सपूर्वा परमीलने । स्युः पत्नीनां सहस्राणि, षोडशानुष्णरोचिषंः ॥१५४॥
ये प्रत्येक पट्ट देवियों का अलग-अलग चार हजार देवियों का परिवार होता है, जो देवियां अति तेजस्विनी होती है । ये पट्टरानी देवियों के चार-चार हजार का कुल जोड़ सोलह हजार होता है । अत: चन्द्र की सोलह हजार देवियां-पत्नियां होती है । (१५३-१५४)
तथैकैकाऽग्रमहिषी, प्रागुक्ता शीतरोचिषः । भर्तु स्तथाविधामिच्छामुपलभ्यरतक्षणे ॥१५५॥ विलासहासललितान् सलीलादभ्रविभ्रमान् । '
देवी सहस्रां श्चतुरः, स्वात्म तुल्यान् विकुर्व्ववेत् ॥१५६॥
तथा चन्द्र की पहली जो चार अग्रमहिषी देवियां कही है वे एक-एक भी अपने स्वामी की तथा प्रकार की इच्छा को देखकर रत समय में विलास, हास्य के