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(२६६). उत्तप्तस्वर्णवर्णाङ्गा, सर्वे ज्योतिषिकामराः । पन्च वर्णाः पुनरमी, तारकाः परिकीर्तिताः ॥१४४ ॥
तपे हुए सुवर्ण वाले सर्व ज्योतिषी देव होते है जबकि तारा समुदाय पांचों वर्ण वाले कहे गये हैं । (१४४)
सर्वेभ्योऽल्पर्द्धयस्तारास्तेभ्यो नक्षत्र निर्जराः । महर्द्धिका ग्रहास्तेभ्यो, भवन्ति प्रचुरर्द्धयः ॥१४५॥ ग्रहेभ्योऽपि विवस्वन्तो, महर्द्धिका स्ततोऽपि च । ज्योतिश्चकस्य राजानो, राजानो.ऽधिक ऋद्धयः ॥१४६॥
इन पांच प्रकार के ज्योतिषिक् में तारा सर्व से अल्प ऋद्धि वाले होते हैं। नक्षत्र तारा से अधिक ऋद्धि वाले होते हैं, उससे ग्रह अधिक और महान ऋद्धिवाले होते हैं। ग्रह से सूर्य विशेष ऋद्धि वाले होते हैं, और उससे ज्योतिष चक्र का राजा चन्द्र विशाल ऋद्धि वाला होता है । (१४५-१४६)
चत स्रोऽग्रमहिष्यः स्युः शीतांशो स्ताश्च नामतः।
चन्द्र प्रभा च ज्योत्स्नाभाऽथार्चिाली प्रभङ्करा ॥१४७॥ - चन्द्र की चार अग्र महिषी होती है उसके नाम अनुक्रम से १- चन्द्र प्रभा २- ज्योत्सनाभा; ३- अर्चिमाली, और ४- प्रभंकरा है । (१४७) साम्प्रतं तु- एताः पूर्वभवेऽरक्षु पुर्यां वृद्ध कुमारिकाः।
.. चन्द्रप्रभा दीस्वाख्यानुरूपाख्यापितृकाः स्मृताः ॥१४८॥ चन्द्र श्री प्रभृति स्वाख्यातुल्याख्या मातृकाः क्रमात् । पुष्पचूलार्यिकाशिष्याः श्री पाश्र्वात् प्राप्त संयमाः ॥१४६॥ किन्चिद्विराध्य चारित्रम प्रतिक्रम्य पाक्षिकीम् । कृत्वा संलेखनां मृत्वा विमाने चन्द्रनामनि ॥१५०॥ चन्द्राग्रमहिषीत्वेनोत्पन्नाः सिंहासनेषु च । भान्ति स्वाख्यासमाख्येषु भ स्थित्यर्द्धजीविताः ॥१५१॥
वर्तमान काल में चन्द्र की जो इन नाम की अग्रमहिषी है उनका पूर्व जन्म का वृतांत इस प्रकार है । अपने नाम के अनुरुप चन्द्र प्रभ आदि नामवाली पिता की