________________
(२६८)
तेज मंडल स्वरूप सूर्य के आकार वाले चिह्न को मुगट के अग्रभाग में सूर्य इन्द्र धारण करता है।
एवं स्व स्वमण्डलानु कारि चिह्नाढय मौलयः ।
शीतो ग्रभानुवज्ञे या, ग्रहनक्षतारकाः ॥१४२॥
इस तरह से अपने-अपने आकार के अनुसार चिह्न से युक्त मुकुट वाले चन्द्र सूर्य समान ग्रह-नक्षत्र-तारा के देवता जानना चाहिए । (१४२). ___तथा च तत्वार्थ भाष्यम् - "मुकुटेषु शिरोमुकुटोपगूहिभिः प्रभा मण्डल कल्पैरूज्ज्वलैः सूर्य चन्द्र ग्रह नक्षत्र तारा मण्डलैर्यथास्वं चिहनैर्विराजमाना द्युतिमन्तो ज्योतिष्का भवन्ती" ति, अत्र शिरो मुकुटोपगूहिभिरिति ॥
और श्री तत्वार्थ भाष्य में कहा है कि - मुकुट के अग्रभाग ऊपर रहे प्रभा मंडल स्वरूप, उज्जवल सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र तारा रूपी अपने-अपने चिह्नो से शोभायमान द्युतिमान ज्योतिषी होते है ।' यहां जो सिर पर मुकुट होता है उसके अग्रभाग में चिह्न होता है ।
ग्रन्थान्तरे पुनरूक्तमेते चन्द्रार्यमादयः । स्वनामाङ्क प्रकटितं, मुकुटं मूर्ध्नि विभ्राति ॥१४३॥
ग्रन्थान्तर में इस तरह से कहा है कि - 'चन्द्र-सूर्य आदि अपने-अपने नाम के चिह्न से अंकित मुकुट को मस्तक पर धारण करते हैं ।' (१४३)
तथोक्तं जीवाभिगम वृत्तौ - "सर्वेऽपि प्रत्येकं नामाङ्केन प्रकटितं चिह्न मुकुटे येषां ते तथा, किमुक्तं भवति ? चन्द्रस्य मुकुटे चन्द्र मण्डलं लच्छनं स्वनामाङ्क प्रकटितं, सूर्यस्य सूर्यमण्डलं, ग्रहस्य ग्रहमण्डल" मित्यादि, प्रज्ञापनाया मपि पत्तेयनामंक पायडिय चिंधमउडा' इति । .
श्री जीवाभिगम सूत्र की वृत्ति में कहा है कि - 'सभी अपने नाम से युक्त मुकुट को धारण करने वाले हैं । अर्थात् चन्द्र के मुकुट में चन्द्र का चिह्न और अपना नाम होता है सूर्य के मुकुट में सूर्य का चिहन और उनका नाम अंकित होता है । ग्रह के मुकुट में ग्रह का नाम और चिह्न अंकित होता है ।' इत्यादि इस तरह समझ लेना । श्री प्रज्ञापना में भी कहा है कि - 'प्रत्येक नाम से अंकित प्रगट चिह्न युक्त मुकुट वाले ज्योतिष्क देव होते हैं ।'