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________________ (२६७) उत्तम चार से पांच सामानिक देवता मिलकर उसका कार्यभार संभालते हैं। (१३५-१३६) इन्द्र शून्यश्च काल: स्याज्जधन्यः समयावधिः । उत्कर्षतश्च षण्मासा नित्युक्तं सर्वदर्शिभिः ॥१३७॥ इन्द्र से शून्य काल जघन्य से एक समय और आकृष्ट से छ: महीने का है ऐसा सर्वदर्शी ज्ञानी महापुरुषों ने कहा है । (१३७) तथोक्तं जीवाभिगम सूत्रे जम्बू द्वीप प्रज्ञन्ति सूत्रे ऽपि - "तेसि णं भंते ! देवाणं इंदे चुए से कहमियाणिं पकरेंति ?" इत्यादि । श्री जीवाभिंगम सूत्र तथा श्री जम्ब द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में भी उसी तरह कहा है - हे भगवान ! इन देवताओं के स्वामी-इन्द्र का च्यवन होने के बाद हमेशा क्या करते हैं ? इत्यादि प्रश्न किया और भगवान ने उत्तर दिया है । ज्योतिष्काः पन्चधा ऽप्येते, देवाश्चन्द्रार्यमादयः । विशिष्ट वस्त्राभरण किरणोज्जवल भूधनाः ॥१३८॥ नानानूलरत्न शालिमौलिमण्डितमौलयः । 1. सौन्दर्य लक्ष्मी कलिता, द्योतन्ते ललितद्युतः ॥१३६॥ - चन्द्र सूर्यादि पांच प्रकार के ज्योतिषी देव विशिष्ट वस्त्र और आभूषण के तेज से उज्जवल शरीर वाले, विविध प्रकार के नौ रत्न से शोभते मुकुट से देदीप्यमान मस्तक वाले, सौंदर्य की लक्ष्मी से युक्त और ललित कान्ति से शोभायमान है । (१३८-१३६) तत्र चन्द्रमसः सर्वे, प्रभामण्डला सन्निभम् । मुकुटाग्रे दधत्यङ्क सच्चन्द्रमण्डलाकृतिम् ॥१४०॥ सुन्दर चन्द्र मंडल की आकृति वाले प्रभा मंडल रूप चिह्न को मुकुट के अग्रभाग में सभी चन्द्र (इन्द्र) धारण करते हैं । (१४०) सूर्यास्तु चिह्न दधति, मुकुटाग्र प्रतिष्ठितम् । ... विवस्वन्मण्डलाकारं, प्रभाया इव मण्डलम् ॥१४१॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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