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क्र० विषय श्लोक | क्र० विषय श्लोक | सं० __ सं० सं०
सं० ३१७ बावड़ियों की शोभा १५६ ३३६ चैत्य स्तूप तथा उसकी मणि २०६ ३१८ बावड़ियों की देवांगनाओं के १५६ पीठिका का मान साथ में शोभा
|३४० पीठिका के चैत्य वृक्ष का वर्णन २१३ ३१६ चार अंजन गिरियों की सोलह १६२ / ३४१ वृक्ष की अगली पीठिका तथा २१५ बावड़ियों के नाम
उसके ध्वज का मान ३२० स्थानांग सूत्र से अभिप्राय रूप १६६ |३४२ ध्वज के पश्चात नंदा बावड़ी २१७ में बावड़ियों के नाम
का वर्णन
२१७ ३२१ बावड़ियों की चारों दिशा में १६६/३४३ नंदा बावड़ी के चार उद्यानों के २१६ वन की दूरी तथा उनके नाम
नाम ...३२२ वनों का विस्तार . १७१ ३४४ प्रासाद में क्या-क्या है २२२
३२३. वनों की शोभा का वर्णन ३४५ मन्दिर की पीठिका तथा २२४ ३२४ दधिमुख पर्वत का वर्णन
देवच्छन्द का मान ... ३२५ स्थान
|३४६ उसमें १२४ जिन प्रतिमाओं २२६ ३२६ नाम की सार्थकता
के विषय में ___ ३२७ पर्वतों का आकार-विस्तार १७७ सेवक प्रतिमाओं के विषय में २२६ ३२८ ऊंचाई तथा पृथ्वी में गहराई . १७८/३४८ पूजकों का वर्णन
२३५ ३२६ रतिकर पर्वतों का स्थान
देवता यहाँ भक्ति महोत्सव ..३३० द्वीप के ५२ जिनालय किस १८५ कैसे करते है • तरह से है?
कौन देव किस पर्वत पर ३३१ जिन प्रासादों का प्रमाण
महोत्सव करते है . ३३२ मन्दिरों की मनोहरता .
देव-देवियों के नृत्य के ३३३ अंजन पर्वत ऊपर जिनायतन १६५ विषय में ३३४. जिनायतन के चार द्वार तथा १६७
कुमार नंदी सेन का प्रसंग २५६ .... 'देवों के नाम
चार रतिकर पर्वत
२६१ ३३५. जिनायतनों की ऊँचाई आदि १६८
पर्वतों का आकार-विस्तार- २६२ ३३६ मुख मंडप तथा प्रेक्षा मंडप का २०२
परिधि आदि
| ३५५ पर्वतों की चार दिशा में २६४ ३३७ अक्षपाटक की मणि पीठिका २०३/
राजधानियाँ . का मान व प्रमाण
|३५६ अग्नि कोण के रतिकर पर्वत २६५ .३३८ प्रेक्षा मंडप की मणि पीठिका २०८
की चार राजधानी तथा देवियों का मन व प्रमाण
के नाम
२४२
२४५
२५१
मान