________________
(२६२) यद्यप्यूर्ध्वं सनवतेः सप्तशत्या व्यतिक्रमे । मेरौ यथोक्तौ न व्यासायामौ सम्भवतो यतः ॥१०८॥ नवैकादशजा अंशा, योजनान्येकसप्ततिः । इयद् भूनिष्ठ विष्कम्भायामादत्रास्य हीयते ॥१०६॥ परमुक्तमिदं स्वल्पोनताया अविवक्षया ।
अन्यथा प्रत्यवस्थानं, ज्ञेयं वाऽस्य बहुश्रुतात् ॥११०॥ यद्यपि समतल भूमि से सात सौ नब्बे (७६०) योजन ऊंचे मेरुपर्वत की लम्बाई चौड़ाई पहले कह गये है अर्थात् दस हजार योजन नहीं रहता क्योंकि भूमिगत चौड़ाई लम्बाई में से ७१-६/११ योजन कम होती है परन्तु यह कमी (घट-जाना) थोड़ा अकिंचित् होने से उसकी विवक्षा किये बिना यह बात कही है, शेषं तो बहुश्रुत ज्ञानी पुरुष के पास से इस बात का सम्पूर्ण रूप निर्णय करना चाहिए। (१०८-११०)
एवं जम्बू द्वीप एव, विज्ञेयं तारकान्तरम् । .
लवणाब्धि प्रभृतिषु, त्वेतदुक्तं न द्दश्यते ॥१११॥ . ताराओं का पारस्परिक कहा जाता यह अंतर जम्ब द्वीप में ही जानना । शेष लवण समुद्रादि में उक्त अंतर देखने को नहीं मिलता । (१११)
तथोक्तं संग्रहणी सूत्रे - "तारस्स य तारस्स यं जम्बू द्वीवम्मि अंतर गुरुयं ।" जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रेऽपि-"जम्बूद्वीपेणं दीवेताराय २ केवइए अबा हाए अंतरे पण्णत्ते?" इत्यादि। . ___तथा साक्षीरूप में संग्रहणी सूत्र में इस तरह से कहा है - 'जम्बूद्वीप के अन्दर एक तारा से दूसरे तारा का उत्कृष्ट अंतर इत्यादि' तथा जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में भी कहा है - 'जम्बू द्वीप के अन्दर एक तारा से दूसरे तारा का अबाधा अंतर कितना है ? इत्यादि । (इसके अनुसार जम्बूद्वीप में ताराओं का अन्तर कहा है, इससे अन्य द्वीपादि से जम्बूद्वीप के तारा की व्यवस्था भिन्न है यह प्रतीत होता है ।)'
अमी विमानाः सर्वेऽपि समन्ततः प्रसृत्वरैः । अत्युज्जवलाः प्रभापूरैर्दूरीकृततमोऽङ्कुशः ॥११२॥