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________________ (२६०) अधिक वेग वाले हैं और उससे ताराओं के विमान की गति सर्वज्ञ भगवन्तों ने सबसे तीव्र कहा है। इस तरह से सर्व से अल्प गति वाले चन्द्र और सूर्य के विमान है और सबसे सत्वर-तेज गति वाले तारा के विमान कहे हैं । (६१-६५) जम्बू द्वीपऽथ ताराणा मेषां द्वेधा मिथोऽन्तरम् । निर्व्याधातिकमित्येकं परं व्याघात सम्भवम् ॥६॥ तत्र मध्यस्थ शैलादि व्यवधायक निर्मितम् । व्याधातिकमन्तर स्याद्वितीयं तु स्वभावजम् ॥६७॥ स्याद् द्विधैकैकमप्येतज्जधन्योत्कृष्ट भेदतः । . एवं चतुर्विधं तारा विमानानां मिथोऽन्तरम् ॥६८॥ . जम्बू द्वीप के ताराओं का अन्तर दो प्रकार का है - १- व्याधातिक और २- निर्व्याधातिक, उसमें मध्य में रहे पर्वतादि के कारण से जो अंतर रहता है वह व्याधातिक अन्तर कहलाता है, जबकि दूसरा स्वाभाविक अंतर है। ये दोनों प्रकार के अन्तर भी जघन्य और उत्कृष्ट दो प्रकार से इस प्रकार तारा विमानों का परस्पर अंतर चार प्रकार से होता है। (६६-६८) तत्र च-शतानि पन्च धनुषां स्वाभाविकं जंघन्यतः। उत्कर्षतो द्वे गप्यूते, जगत्स्वाभाव्यतस्तथा ॥६६॥ इसमें स्वाभाविक-निर्व्याधात अन्तर में जघन्य अन्तर पांच सौ धनुष्य का है और उत्कृष्ट अन्तर दो कोस (४००० धनुष्य) का है । जगत का स्वभाव ही इसी प्रकार का है । (६६) जघन्यतो योजनानां, सषटषष्टिशतद्वयम् । व्याधातिकमन्तरं स्याद्भावना तत्र दर्श्यते ॥१०॥ चत्वारि योजन शतान्युत्तुङ्गो निषधाचलः । कूटान्यस्यापरि पन्चशततुङ्गानि तानि च ॥१०१॥ विष्कम्भायामतः पन्च, योजनानां शतान्यधः । मध्यदेशे पुनः पन्च सप्तत्याढयं शतत्रयम् ॥१०२॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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